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सभी यहां नग्न घूमते हैं, लड़के-लड़कियां सोते हैं एक ही कमरे में!

गोंड भारत की एक प्रमुख जनजाति हैं। ये भारत के कटि प्रदेश - विंध्य-पर्वत, सतपुड़ा पठार, छत्तीसगढ़ के समीप मैदान में दक्षिण तथा दक्षिण-पश्चिम में गोदावरी नदी तट तक फैले हुए पहाड़ों और जंगलों में रहने वाली आस्ट्रोलायड नस्ल है। 

आज भी मोदियाल गोंड जैसे समूह हैं जो जंगलों में प्राय: नंगे घूमते और अपनी जीविका के लिये शिकार तथा वन्य फल मूल पर निर्भर हैं। गोंडों की जातीय भाषा गोंडी है जो द्रविड़ परिवार की है और तेलुगु, कन्नड़, तमिल आदि से संबन्धित है।

छिंदवाड़ा और पचमढ़ी के घने जंगलों में भी इनका बसेरा है। यहां अविवाहित लड़के-लड़कियों के अलग-अलग कमरे नहीं होते, वे एक ही कमरे में सोते हैं। ये लोग भूत-प्रेत और जादू-टोने को बहुत मानते हैं। यानी इनकी अपनी अलग ही एक दुनिया है। 

ये हैं समाज की मान्यताएं: भारतीय समाज के निर्माण में गोंड संस्कृति का बहुत बड़ा योगदान रहा है या यूं कहें कि गोंडी संस्कृति की नींव पर भारतीय संस्कृति खड़ी है। गोंडवाना भूभाग में निवासरत गोंड जनजाति की अदभुत चेतना उनकी सामाजिक प्रथाओं, मनोवृत्तियों, भावनाओं, आचरणों तथा भौतिक पदार्थों को आत्मसात करने की कला का परिचायक है। समस्त गोंड समुदाय को पाहंदी कुपार लिंगों ने कोया पुनेम के मध्यम से एक सूत्र में बंधने का काम किया।

गोंडी भाषा व साम्राज्य: गोंडी भाषा गोंडवाना साम्राज्य की मातृभाषा है। गोंडी भाषा अति प्राचीन भाषा होने के कारण अनेक देशी-विदेशी भाषाओं की जननी रही है। गोंडी धर्म दर्शन के अनुसार गोंडी भाषा का निर्माण आराध्य देव शम्भू शेक के डमरू से हुई है, जिसे गोंदवानी भी कहा जाता है। अति प्राचीन भाषा होने की वजह से गोंडी भाषा अपने आप में पूरी तरह से पूर्ण है। गोंडी भाषा की अपनी लिपि व व्याकरण है जिसे समय-समय पर गोंडी साहित्यकारों ने पुस्तकों के माध्यम से प्रकाशित किया है।

युवकों की मनोरंजन संस्था - घोटुल का गोंडों के जीवन पर बहुत प्रभाव है। बस्ती से दूर, गांव के अविवाहित युवक एक बड़ा घर बनाकर रहते हैं। जहां वे रात के वक्त नाचते, गाते और सोते हैं, एक ऐसा ही घर अविवाहित युवतियां भी तैयार करती हैं। गोंडों में अविवाहित युवक और युवतियों का एक ही कक्ष होता है जहां वे मिलकर रहते, सोते व नाच-गाना करते हैं। अपने मनोरंजन के लिए ये लोग खुले मैदान में आग जलाकर  उसके आस-पास नाचते व पारंपरिक गीतों का आनंद लेते हैं।

इनका इतिहास: गोंडों का भारत की जनजातियों में महत्वपूर्ण स्थान है जिसका मुख्य कारण उनका इतिहास है। 15वीं से 17वीं शताब्दी के बीच गोंडवाना में अनेक गोंड राजवंशों का दृढ़ और सफल शासन स्थापित था। इन शासकों ने बहुत से दृढ़ दुर्ग, तालाब तथा स्मारक बनवाएं और सफल शासकीय नीति तथा दक्षता का परिचय दिया है। इनके शासन की परिधि मध्य भारत से पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार तक थी। अभी हाल तक इनके मंडला और गढ़मंडल नाम के दो राज्य रहे हैं। गोंडवाना की प्रसिद्ध रानी दुर्गावती गोंड जाति की ही थी।

पराक्रम के बल पर किया राज्य निर्माण: गोंडवाना लैंड आदिकाल से निवासरत गोंड जनजाति के कारण जाना जाता था, कालांतर में गोंड जनजातियों ने विश्व के विभिन्न हिस्सों में अपने-अपने राज्य विकसित किए, जिनमें से नर्मदा नदी बेसिन पर स्थित गढ़-मंडला एक प्रमुख गोंडवाना राज्य रहा है। राजा संग्राम शाह इस साम्राज्य के पराक्रमी राजाओं में से एक थे, जिन्होंने अपने पराक्रम के बल पर राज्य का विस्तार व नए-नए किलों का निर्माण किया।

फिर हुआ सेना में इजाफा: 1541 में राजा संग्राम की मृत्यु के बाद कुवंर दलपत शाह ने पूर्वजों के अनुरूप राज्य की विशाल सेना में इजाफा करने के साथ-साथ राज्य का सुनियोजित रूप से विस्तार व विकास किया।
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