फ्रांस की पीजो के हाथों ऐतिहासिक एंबेसडर ब्रांड बेचे जाने के फैसले पर हिदुस्तान मोटर्स (एचएम) के कर्मचारी संगठनों ने नाराजगी जताई है।
भारत में कभी सत्ता और रसूख की प्रतीक रही स्वदेशी एंबेसडर कार का ब्रांड बिक गया है।
इसकी घोषणा एंबेसडर ब्रांड पर मालिकाना हक रखने वाले सीके बिड़ला समूह की कंपनी हिंदुस्तान मोटर्स ने की है।
पश्चिम बंगाल में हुगली जिले के उत्तरपाड़ा स्थित कंपनी के प्लांट में कार निर्माण तीन साल पहले यानी 2014 से ही बंद है।
मजदूर यूनियन इंटक से संबद्ध एचएम कर्मचारी संघ के महासचिव अजित चक्रवर्ती ने कहा कि मजदूरों को उनके हक से वंचित करने के लिए प्रबंधन सब कुछ बेचने पर आमादा है।
यह निराशाजनक है कि प्रबंधन ने एंबेसडर ब्रांड बेच दिया है, जबकि सैकड़ों कर्मियों के बकाये का मुद्दा अभी तक सुलझा नहीं है।
इस प्लांट के लगभग 600 कर्मचारियों को वीआरएस का लाभ नहीं दिया गया है। जिन्होंने ने इस स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना को चुना, उन्हें गे्रच्युटी तक नहीं दी गई।
इसी तरह सीटू से संबद्ध एचएम वर्कर्स यूनियन के उपाध्यक्ष मनींद्र चक्रवर्ती ने कहा, कंपनी के इस कदम के विरोध में हम हाई कोर्ट का रुख करेंगे।
हमारी मांग है कि यहां जल्द से जल्द मैन्यूफैक्चरिंग शुरू करके कर्मचारियों को बकाया दिया जाए।
एचएम ने एंबेसडर ब्रांड की बिक्री के लिए पीजो एसए से करार किया है। इसमें ट्रेडमार्क भी शामिल है। यह सौदा 80 करोड़ में हुआ है।
पिछले महीने ही पीजो ने भारतीय बाजार में प्रवेश के लिए सीके बिड़ला समूह के साथ समझौता किया था। इसके तहत शुरुआत में करीब 700 करोड़ रुपये का निवेश किया जाना है।
इस राशि का इस्तेमाल तमिलनाडु में मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट लगाने में किया जाएगा। इस यूनिट में हर साल एक लाख वाहन बनाने की तैयारी है।
समूह के प्रवक्ता ने बताया, हमने पीजो के साथ एंबेसडर ब्रांड व ट्रेडमार्क को बेचने का समझौता किया है। इस लोकप्रिय ब्रांड को बेचने के लिए हमें सही खरीदार की तलाश थी। इस सौदे के बाद हम कर्मचारियों को उनका बकाया व अन्य देनदारियां चुका देंगे।
करीब 50 साल तक एंबेसडर कार का भारतीय बाजार में अलग ही रुतबा रहा। इस कार पर प्रधानमंत्री से लेकर आम लोगों ने शान से सवारी की। सीके बिड़ला के दादा बीएम बिड़ला ने हिंदुस्तान मोटर्स की नींव 1942 में बंगाल में हुगली जिले के उत्तरपाड़ा में रखी थी।
यहीं 1958 से एंबेसडर कार बननी शुरू हुई। इस कार के कलपुर्जे शुरुआत में इंग्लैंड से मंगाए जाते थे। बाद में कंपनी खुद ही बनाने लगी। 60 से 80 के दशक में एंबेसडर की रिकॉर्ड बिक्री होती थी।
करीब 40 साल तक एंबेसडर का भारतीय कार बाजार में दबदबा रहा। बाद में बाजार में अन्य कारों के आने से धीरे-धीरे यह रुतबा घटने लगा। नौबत यह आ गई कि 2013-14 में इसकी बिक्री 2,500 यूनिट सालाना रह गई। लगातार घाटे के चलते 2014 में कंपनी ने प्लांट में एंबेसडर का निर्माण बंद कर दिया। इससे सैकड़ों कर्मचारी बेरोजगार हो गए। अब स्वदेशी एंबेसडर ब्रांड को विदेशी कंपनी के हाथों बेचना पड़ा है।
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