इस बीमारी में झटके आना, बेहोशी और कोमा जैसी स्थिति दिखाई देती है। ये ऐसी बीमारी बनकर सामने आ जाती है जहां 60 फीसद मरीज मारे जाते हैं। बचे हुए मरीजों में से लगभग आधे लकवाग्रस्त हो जाते हैं।
बीमारी आम तौर पर बुखार, सिर में सुजन या दर्द से शुरू होती है, लेकिन बाद में ये भयावह रूप ले लेती है। जैसे कम दिखना, आंखों की रोशनी कम होना, आपको अजीब से दौरे आना, भ्रम, सोचने की शक्ति कम हो जाना, आदि।
बीमारी आम तौर पर बुखार, सिर में सुजन या दर्द से शुरू होती है, लेकिन बाद में ये भयावह रूप ले लेती है। जैसे कम दिखना, आंखों की रोशनी कम होना, आपको अजीब से दौरे आना, भ्रम, सोचने की शक्ति कम हो जाना, आदि।
तीन से 15 साल के बच्चे या फिर 60 साल के बुर्जुगों को ये बीमारी ज्यादा होती है। ये बुखार किसी भी जानवर के काटने से फैल जाता है।
इंसेफेलाइटिस से प्रभावित राज्य उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और असम है। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, देवरिया, बस्ती, महराजगंज, कुशीनगर, संत कबीरनगर और सिद्धार्थनगर इस बीमारी से अति प्रभावित जिलों में शुमार किये जाते हैं।
पूर्वी उत्तरप्रदेश में इस बीमारी से मरने वालों का आंकड़ा सुनकर आप चौंक जाएंगे। गोरखपुर में जनवरी से सितंबर तक मरने वालों का आंकड़ा 180 तक पहुंच गया था। इसी साल 682 लोगों को ये बुखार हो चुका है। ओडिशा, बंगाल, में भी अक्टूबर में 27 बच्चे मारे गए हैं। अगस्त में गोरखपुर में 27 लोग इस बीमारी से मारे जा चुके हैं।
प्रारंभिक स्थिति में यह बुखार फ्लू के हल्के लक्षण प्रकट करेगा। लेकिन बाद में यह खतरनाक बन जाती है। बरसात और ठंड के मौसम में ये महामारी की तरह फैल जाता है। मच्छरों से बचाव के लिए कीटनाशक का प्रयोग करें।
प्रारंभिक स्थिति में यह बुखार फ्लू के हल्के लक्षण प्रकट करेगा। लेकिन बाद में यह खतरनाक बन जाती है। बरसात और ठंड के मौसम में ये महामारी की तरह फैल जाता है। मच्छरों से बचाव के लिए कीटनाशक का प्रयोग करें।
रात में सोते समय मच्छरदानी का प्रयोग करें। इंसेफेलाइटिस रोग पैदा करने वाले मच्छर शाम को ही काटते हैं, इसलिए शाम को बाहर निकलते समय शरीर को ढककर ही निकलें।
घर को साफ-सुथरा रखें। कहीं गंदा पानी जमा ना रखें। इंसेफेलाइटिस का टीका जरूर लगवाएं। इस टीके के तीन डोज होते हैं।
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