मंदिरों में तुलसी पंचामृत और भोग में तुलसी के पत्ते मिले हुए देखे होंगे। कहा जाता है कि जब तक भोग में तुलसी के पत्ते नहीं होते तब तक देव उस भोग को स्वीकार नहीं करते हैं, लेकिन एक देव ऐसे भी हैं, जिनके भोग में तुलसी के पत्ते वर्जित है।
वो हैं प्रथम पूज्य गणेश, जिनके भोग में कभी भी तुलसी के पत्ते को नहीं डाला जाता है। हालांकि तुलसी को देव वृक्ष के रूप में पवित्र माना जाता है।
इसके बाद भी पौराणिक मान्यता के मुताबिक भगवान गणेश को पवित्र तुलसी नहीं चढ़ाना चाहिए।
इसके पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी है - एक बार प्रथम पूज्य गणेश गंगा किनारे तप में लीन थे। इसी दौरान देवी तुलसी वहां पहुंची। वह गणेश को देखकर मोहित हो गई।तुलसी ने विवाह की कामना से उनका ध्यान भंग कर दिया।
तब भगवान गणेश क्रोधित हो गए और इस तरह के कृत्य को अशुभ बताया। साथ ही तुलसी की शादी की मंशा जानकर स्वयं को ब्रह्मचारी बताकर उससे शादी के प्रस्ताव को नकार दिया।
इस बात से दुखी होकर तुलसी ने भगवान गणेश को दो विवाह होने का शाप दे दिया। इस पर भगवान गणेश ने भी तुलसी को शाप दे दिया कि तुम्हारी शादी असुर से होगी।
ऐसा शाप सुनकर तुलसी ने भगवान गणेश से माफी मांगी।तब भगवान गणेश ने तुलसी से कहा कि तुम पर असुरों का साया तो होगा, लेकिन तुम भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण को प्रिय होगी।
कलयुग में तुम्हें पूजा जाएगा। तुम देववृक्ष के रूप में जीवन और मोक्ष देने वाली होगी। मेरी पूजा में तुलसी का चढ़ाना शुभ नहीं माना जाएगा।
मान्यता है कि तब से ही भगवान गणेशजी की पूजा में तुलसी वर्जित मानी जाती है और नहीं उनके भोग में तुलसी चढ़ाई जाती है।
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