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रमजान मुबारक : 'रमजान' के महीने और 'रोजे' की खास बातें

इस्लामिक कैलेंडर का नौंवा महीना 'रमजान' का होता है। इस्लाम में रमजान के महीने को सबसे पाक महीना माना जाता है क्योंकि इसी महीने में कुरान उतरा (अवतरित) था। साल 2016 में रमजान 07 जून से शुरु होंगे।

रमजान के दौरान मुसलमान रोजा रखते हैं और इबादत में वक्त गुजारते हैं। इबादत के दूसरे तरीकों की तरह रोजा भी एक बाहरी रूप है जिसे हम जानते हैं।

 जो रोजा रखते हैं लेकिन गलत काम करते हैं वे रमजान के दौरान रोजा रखने का महत्व नहीं समझते। मुहम्मद साहब ने कहा है कि ऐसा करने वालों को सिर्फ भूख और प्यास ही मिलती है। रोजे में हम अपनी बुरी आदतों पर काबू कर हमेशा गलत नहीं करने की तैयारी करते हैं।

इस महीने में रोजे रखना सभी बालिग और स्वस्थ्य लोगों के लिए वाजिब (अनिवार्य) बताया गया है। बीमार, बूढ़े, सफर कर रहे लोगों, गर्भवती महिलाओं और दूध पिलाने वाली माओं को रोजे रखने या ना रखने की आजादी दी गई है। 

मासिक धर्म से गुजर रही महिलाओं के लिए भी रोजा रखने की मनाही है। मासिक धर्म के खत्म होने के बाद रोजा रखना जरूरी है।

रमजान के महीने में सुबह की अजान (नमाज का वक्त) से पहले सहरी (खाना) खा ली जाती है। इसके बाद शाम को अजान (नमाज का वक्त) के बाद तय वक्त पर ही इफ्तार किया जाता है। इस बीच कुछ भी खाया-पिया नहीं जाता।

हर मुसलमान के लिए जकात देना भी इस्लाम में वाजिब (फर्ज) बताया गया है। जकात उस पैसे को कहते हैं जो अपनी कमाई से निकाल कर खुदा की राह में खर्च किया जाए। 

इस पैसे का इस्तेमाल समाज के गरीब तबके की सेवा के लिए किया जाता है।मान्यता है कि जकात रमजान के महीने में बीच में ही दे देनी चाहिए ताकि इस महिने के बाद आने वाली ईद पर गरीबों तक यह पहुंच सके और वह भी ईद की खुशियों में शरीक हो सकें। 

रमजान के अगले महिने की पहली तारीख को ईद-उल-फित्र का त्यौहार मनाया जाता है।
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