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Mysterious life : अघोरी और नागा बाबाओं पर कई सालों से रिसर्च कर रही पलना, जाने रहस्य

 
वडोदरा।   नंगे बदन पर भस्म लपेटे, आंखों में तेज लिए अघोरी और नागा बाबा इतने आक्रामक दिखाई पड़ते हैं कि आम आदमी इनके पास से गुजरने से भी डरता है, लेकिन वडोदरा की एक अमीर परिवार की हाई एजुकेटेड और पेशे से वकील युवती ने कई नागा बाबाओं और अघोरियों के साथ रहकर उनकी वे बातें भी जानीं, जिसका खुलासा नागा बाबा आसानी से नहीं करते।

वडोदरा के इलोरा पार्क इलाके में रहने वाली 28 वर्षीय पलना पटेल ने जूनागढ़ की गुफाओं, कुंभ के मेले, काशी और बनारस में कई दिनों तक रुककर अघोरी और नागा बाबाओं की दिनचर्या अपनी आंखों से देखी है। पलना का कहना है कि ये साधू पूरे समय अपने शरीर को कष्ट देकर अनुष्ठान और सिद्धि हासिल करने में लगे रहते हैं।

 इनका नित्यकर्म बिल्कुल सेना के जवानों की तरह होता है। चाहे कड़ाके की ठंड हो या तेज बारिश। नागा साधु तड़के सुबह ही नहा लेते हैं और इसके बाद योग के अलावा अपने-अपने तरीके से साधना करते हैं।

पेशे से वकील पलना पटेल बताती हैं कि इस रिसर्च के बारे में सुनकर अधिकतर लोगों के मन में विचार आता है कि शायद मैं किसी धार्मिक अनुष्ठान करने वाले परिवार से संबंध रखती होऊंगी, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं। मेरे घर में भी आम लोगों की तरह पूजा-अर्चना होती है।

 मुझे लिखने-पढ़ने का भी शौक है और अपने दोस्तों के साथ पार्टी और क्लबों में जाकर डांस करने का भी। इसके अलावा मैं नाडियाद के संतराम मंदिर भी जाती हूं। एक बार मंदिर में दर्शन के दौरान मेरे गुरु नारायणदासजी महाराज से जीव, शिव और सत्संग की बातें करते-करते अघोरियों और नागा बाबाओं की भी बात निकली तो मैंने इनके बारे में जानने का निश्चय कर लिया।

पलना पटेल कहती हैं...‘ बनारस में एक अघोरी के बताए अनुसार, अघोर साधना कोई गंदी विद्या नहीं, यह तो बस साधना का एक तरीका मात्र है। जिस तरह सामान्य व्यक्ति मंदिर में फल-फूल अथवा प्रसाद अर्पण कर भगवान की आराधना करता है। ठीक उसी तरह एक अघोरी अपने शरीर को कष्ट देकर परमात्मा को प्राप्त करने का प्रयास करता है। हां, अघोरी की साधना के लिए नियम हैं। यह अपने गुरु द्वारा दिए गए मंत्र और मार्गदर्शन से ही संभव है।
बनारस में ‘मैं अघोरियों के बारे में जानने के लिए लगभग दो साल पहले बनारस गई थी। वहां गंगा किनारे एक अघोरी से मुलाकात हुई। आमतौर पर अघोरी आम लोगों से बातचीत नहीं करते, लेकिन मेरे काफी जिद करने पर वह मुझसे बात करने के लिए तैयार हुए। हरेक अघोरी की साधना और तप के तरीके अलग-अलग होते हैं। उन्होंने मुझे बताया कि काशी विश्वनाथ के ज्योतिर्लिग का अभिषेक एक अघोरी बाबा अपने मल-मूत्र से किया करते थे। इनका नाम था- तेलंग स्वामी।’

तेलंग स्वामी मूल उप्र के कन्नौज के ब्राह्मण परिवार से थे। जब उनकी उम्र 12 वर्ष थी, तभी उनकी मां का निधन हो गया था। तेलंग ने श्मशान में मां का अंतिम संस्कार किया और वहीं पर ही साधना करने बैठ गए। उन्होंने श्मशान में लगभग 25 वर्ष तक साधना की। वे लगभग 300 साल तक जीवित रहे।इसी बीच दक्षिण भारत के तेलंगाना से आया एक साधु इस श्मशान से गुजरा तो उसकी नजर साधना कर रहे तेलंग पर पड़ी।

 उन्होंने तेलंग को अपना शिष्य बना लिया और गुरुमंत्र दिए। तेलंग ने इन मंत्रों द्वारा अनेक सिद्धियां पाईं और इसके बाद से ही वह तेलंग स्वामी के नाम से पहचाने जाने लगे। गुरुमंत्र मिलने के बाद उन्होंने अपने चारों ओर अग्नि प्रकट कर 25 सालों तक तपस्या की। इसके बाद 50 साल तक गंगा नदी के जल में बैठकर और 100 सालों तक मौन रहकर तप किया। जब भी तेलंग स्वामी काशी विश्वनाथ के मंदिर में दर्शन के लिए आते तो अपने मल-मूत्र से ही ज्योतिर्लिग का अभिषेक करते थे। आज भी बनारस में तेलंग स्वामी के अनेकों किस्से प्रचलित हैं।

नागा बाबा बनने वाले व्यक्ति को अत्यंत कठिन परिस्थितियों को पार करना होता है। नागा बनने के लिए हर व्यक्ति को तंग-तोड़ विधि करनी होती है।मैंने एक महंत से जिद कर उन्हें पूरी बात बताई कि मैं नागा साधुओं और अघोरियों पर रिसर्च कर रही हूं। काफी मिन्नतों के बाद महंत ने मुझे इस विधि से रू-ब-रू होने की अनुमति दे दी।गुरु द्वारा नागा साधु बनने वाले पुरुष को पूरी एक रात नग्न होकर नदी के ठंडे पानी में गले तक डूबे रहकर खड़े होने का आदेश दिया जाता है। इसके बाद सुबह गुरु पानी में उतरते हैं और उसकी शक्ति की अग्नि परीक्षा लेते हैं। इसके लिए वे काफी देर तक उसकी आंख से आंख मिलाते हैं और इसी बीच अपने एक हाथ से उसके गुप्तांग की एक नस तोड़ देते हैं। 

इसके बाद उसे पानी से बाहर निकाल लिया जाता है। लगभग दो दिनों बाद गुरु फिर उसे कई तरह के मंत्र सिखाते हैं और फिर भ्रमण का आदेश देते हैं। अखाड़े के महंत और गुरु शिष्यों को अपने पुत्र समान ही मानते हैं।अघोरी पंथ के एक अन्य महंत द्वारा बताए अनुसार.. मनुष्य में तमस, रज और सतोगुण होते हैं। अघोर साधना में आने वाला व्यक्ति अगर तमोगुणी होता है तो उसे शुरुआत में पंचकरा-साधना से गुजरना होता है। इसमें मांस-मछली-मदिरा का सेवन और मैथुन (स्त्री के साथ संभोग) करवाया जाता है। तामसिक प्रकृति के व्यक्ति की मानसिक शक्ति मंद होती है। जबकि अघोर साधना के लिए व्यक्ति का मस्तिष्क का सक्रिय होना बहुत जरूरी है, क्योंकि तभी वह ईश्वर द्वारा बनाए विश्व के गूढ़ रहस्यों को समझ सकता है।
पंचकरा-साधना से मानसिक स्थिति को नियंत्रित किया जाता है। यह विधि सामान्य अघोरी नहीं कर सकता। इसके लिए गुरु का मार्गदर्शन और खास मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। इस विधि के दरमियान गेहूं, मांस-मदिरा सहित कई सामग्रियों की अग्नि में आहुति दी जाती है तथा शिवलता मुद्रा में अघोरी को महिला से संभोग करना होता है। यह विधि करने वाला अघोरी शिव-पार्वती की आराधना करता हैअघोर साधना लिए काली चौदस की रात सबसे महत्वपूर्ण होती है।

 इस दिन अघोरी भटकती आत्माओं को अपने वश में करते हैं। अघोरी इस साधना के लिए पांच खोपड़ियों का उपयोग करते हैं। चार खोपड़ियां चार दिशाओं में, जबकि एक खोपड़ी बीच में रखी जाती है। चार खोपड़ियों के बीच की अन्य खाली जगहों पर भी वन्य-प्राणियों की एक-एक खोपड़ी रखी जाती है। किस तरह की सिद्धि हासिल करनी है, इसके आधार पर ही प्राणियों के मुंड का चयन किया जाता है।

यह साधना करने के लिए भी अघोरी को अपने गुरु की आज्ञा और उनके मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। अगर ऐसा नहीं किया गया तो इसके विपरीत और खतरनाक परिणाम आ सकते हैं।तांत्रिक शव साधना के समय शराब का सेवन करते हैं। उनका मानना होता है कि इससे वे नकारात्मक सोच को नियंत्रण कर पाते हैं। अघोरी श्मशान को ‘शहेरे श्मशान’ कहते हैं। उनके मतानुसार यहां आत्माएं रहती हैं। दूसरी ओर श्मशान में हमेशा शांति रहती है। इसीलिए इसे ‘शहेरे श्मशान’ कहा जाता है।

अघोरियों के बताए अनुसार, कुछ आत्माएं उग्र होती हैं और वे तंत्र-मंत्र के दौरान अघोरियों पर पत्थर बरसाने लगती हैं। इसका उद्देश्य उन्हें डराकर श्मशान से भगाना होता हैपरंपरा के अनुसार, शव को मुखाग्नि देने के कुछ ही मिनटों बाद अधजले मृतदेह को पानी में बहा दिया जाता है। यहां कई हठयोगी अघोरी ऐसे हैं जो परमतत्व (शिव) को प्रसन्न करने के लिए इन मृतदेहों की खोपड़ियों का मांस खाते हैं।

 इनमें से कई अघोरी ऐसे होते हैं जो इन खोपड़ियों को अपने साथ ले जाते हैं और उसका इस्तेमाल अपने खाने के बर्तन के रूप में करते हैं। आमतौर पर अधिकतर नागा बाबा अपनी काम वासना पर नियंत्रण रखने के लिए गांजे का इस्तेमाल करते हैं। कुछ नागा बाबाओं के बताए अनुसार, उन्हें गांजा आसानी से मिल जाता है और वे अपनी मर्जी से इसे कहीं भी पी सकते हैं।वडोदरा में रहने वाली पलना पटेल बीए की पढ़ाई के बाद अब वकालत की प्रैक्टिस कर रही हैं। वे पिछले 5 सालों से अघोरी और नागा बाबाओं पर रिसर्च कर रही हैं। वे कहती हैं कि उनका सफर अब भी जारी है... और भी बहुत कुछ जानने के लिए।
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