जबलपुर. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने शनिवार को बड़ा फैसला सुनाया। हाईकोर्ट ने राज्य की सरकारी नौकरियों में एससी-एसटी कैटेगरी के लोगों को प्रमोशन में आरक्षण देने के प्रावधान काे खारिज कर दिया। इससे 2002 से अब तक राज्य के 56 विभागों में हुए 60 हजार से ज्यादा प्रमोशंस रद्द हो जाएंगे।
विभागों को ग्रेडेशन लिस्ट वापस लेनी होगी। उनका डिमोशन हो जाएगा। लेकिन राज्य सरकार इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करने वाली है। चीफ जस्टिस अजय खानविलकर और जस्टिस संजय यादव की डिविजन बेंच का 35 पेज का फैसला आरबी राय, संतोष कुमार और एससी पांडे की पीआईएल पर दिया।
पिटीशनर्स ने 2002 के नियमों को इस आधार पर चुनौती दी थी कि ये 2006 की सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के मुताबिक नहीं हैं। इस पर हाईकोर्ट ने कहा, मौजूदा प्रोविजन संविधान के आर्टिकल 16 (4ए) 16 (4बी) और अार्टिकल 335 का उल्लंघन करता है। इस वजह से 2002 के नियमों के मुताबिक एससी-एसटी कैटेगरी में हुए अलग-अलग प्रमोशंस अब पहले की स्थिति में चले जाएंगे।
पिटीशनर्स के एडवोकेट अमोल श्रीवास्तव ने कहा, इस फैसले से असर ये होगा कि 2002 के बाद इस कैटेगरी में हुए सारे प्रमोशन अवैध होंगे और अलग-अलग विभागों को ग्रेडेशन लिस्ट वापस लेनी हाेगी।
हाईकोर्ट ने कहा कि अप्वाइंटमेंट के दौरान आरक्षण सही है, लेकिन प्रमोशन में आरक्षण टैलेंटेड लोगों को डिमोरलाइज कर देगा। मध्य प्रदेश सरकार ने अनुसूचित जाति को 16 और अनुसूचित जनजाति को 20 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान किया था।
11 जून 2002 से लागू इन नियमों में यह जिक्र किया गया था कि जो पोस्ट रिजर्व्ड रहेंगी, उन्हें कभी भी आरक्षण के दायरे से बाहर नहीं किया जा सकता।यानी एसटी कैंडिडेट के नहीं होने पर उस पोस्ट पर एससी को और एससी कैंडिडेट नहीं होने पर एसटी को प्रमोशन देने का प्रावधान था।
इसके खिलाफ 2011 में 24 पिटीशंस हाईकोर्ट में दायर की गई थीं। बीती 31 मार्च को हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।हाईकोर्ट के फैसले के मुताबिक, मध्य प्रदेश सरकार के सभी डिपार्टमेंट्स को प्रमोशन लिस्ट वापस लेनी होगी।60 हजार से ज्यादा प्रमोशंस रद्द हो जाएंगे।
सीएम शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि सरकार आरक्षण के पक्ष में है, इसलिए वह इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करेगी।
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