भोपाल. वंदना सूर्यवंशी ने नेपाल समेत अनेक स्थानों पर कराते प्रतियोगिताओं में हासिल किए ढेरों पदक। कलेक्टोरेट परिसर में चाय की दुकान। आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण वंदना पति के साथ दुकान के काम में हाथ बंटाने के साथ दो बच्चों के लालन-पालन की जिम्मेदारी भी निभा रही है।
इसके अलावा वह सुबह-शाम बच्चों को कराते की ट्रेनिंग भी देती है। कराते में अपना जुनून और जज्बा दिखाने के लिए वंदना को अपने गहने भी गिरवी रखने पड़े, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी।
कराते की बेस्ट खिलाड़ी और अब कोच बनने के पीछे वंदना के संघर्ष की लंबी दास्तान है।छिंदवाड़ा के बड़कुही गांव से भोपाल तक का सफर करने वाली गांव की इस लड़की को बचपन से ही फाइटर बनने का शौक था।शादी के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। वर्ष 2012 में अपने पति दिनेश सूर्यवंशी के साथ रोजगार की तलाश में भोपाल आ गई।
यहां शंकराचार्य नगर में अपने चाचा-चाची की मदद से कलेक्टोरेट परिसर में चाय-नाश्ते का छोटी सी दुकान लगा ली। कुछ पैसे आए तो किराए के मकान में रहने लगे।इस सबके बीच मन में कसक थी कि वह फाइटर कब और कैसे बनेगी।चाय दुकान पर आने वालों में से किसी ने पश्चिम-मध्य रेलवे संस्थान में चल रहे कराते प्रशिक्षण केंद्र की जानकारी दी।
वह केंद्र के प्रभारी कोच मा. सईद शेख से मिली। उन्होंने उसे अपने यहां एडमिशन दे दिया।वह नियमित रूप से जूडो और
कराते सीखती रही। वह समय भी आया जब वह कराते की अच्छी खिलाड़ी बन गई।इसी दौरान काठमांडू-नेपाल में आयोजित इंटरनेशनल कराते प्रतियोगिता के लिए उसे चुना गया।
तब अपने जेवर गिरवी रखकर पैसों का इंतजाम कर नेपाल पहुंची। वहां सिल्वर मेडल जीता।इससे पहले भोपाल समेत देवास समेत कई स्थानों पर हुई कराते प्रतियोगिताओं में गोल्ड, ब्रांज मेडल जीत चुकी थी।
भोपाल के भेल स्टेडियम में 2014 हुए इंटर डिस्ट्रिक कराते काम्पीटीशन और अगस्त 2015 में हुए इंडीपेंडेंस स्टेट कराते काम्पीटीशन में भी उसने मेडल हासिल किए।
वंदना अब बालक-बालिकाओं को कराते का प्रशिक्षण देती है।कलार समाज के कौशल राय ने बताया कि समाज की ओर से पदाधिकारियों ने उसके घर जाकर उसका सम्मान कर उसे पांच हजार रूपए की सम्मान निधि सौंपी पर वे चाहते हैं कि मुख्यमंत्री उसे कराते प्रशिक्षण केंद्र चलाने में सरकार से आर्थिक मदद मुहैया कराएं।
0 comments:
Post a Comment