नई दिल्ली. यमुना खादर में 11 से 13 मार्च तक होने वाले वर्ल्ड कल्चर फेस्टिवल के आयोजन पर तीन दिन पहले तक सस्पेंस बरकरार है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में पर्यावरण व यमुना को नुकसान पहुंचाने का हवाला देते हुए अनुमति रद्द करने की याचिका पर सुनवाई में सवाल-जवाब का सिलसिला खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा। एनजीटी द्वारा पिछली सुनवाई में पूछे गए सवालों पर डीडीए, उत्तर प्रदेश सरकार, दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के जवाब के बाद पीठ ने नए सवाल किए और बुधवार को होने वाली अगली सुनवाई में उनके जवाब मांगे हैं।
एनजीटी ने केंद्र सरकार से सवाल पूछा है कि आर्ट ऑफ लिविंग के तीन दिन के कार्यक्रम वर्ल्ड कल्चर फेस्टिवल के लिए कोई भी ढांचा खड़ा करने के लिए पर्यावरण मंजूरी की जरूरत क्यों नहीं समझी गई? जस्टिस स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली एनजीटी पीठ ने पर्यावरण मंत्रालय से बुधवार को हलफनामा दाखिल करके यह जवाब मांगा है कि यमुना खादर में कोई भी अस्थाई ढांचा खड़ा करने के लिए पर्यावरण मंजूरी क्यों जरूरी नहीं है? पीठ ने अब सुनवाई के लिए बुधवार का दिन तय किया है।
पीठ ने मंगलवार को यह निर्देश तब दाखिल किया जब पर्यावरण मंत्रालय के अधिवक्ता ने पीठ को बताया कि उन्हें प्रस्तावित स्थल पर कोई भी मलबा नहीं मिला और एन्वायरन्मेंट इंपैक्ट असेसमेंट नोटिफिकेशन-2006 के मुताबिक किसी भी अस्थायी ढांचे के लिए पर्यावरण मंजूरी की आवश्यकता नहीं है। पीठ ने इस मुद्दे पर भी सवाल उठाए कि समारोह के लिए सेना ने पीपों का पुल क्यों बनाया? और, डीडीए से पूछा कि सेना को यहां पुल बनाने की अनुमति किसने दी?
पीठ के समक्ष डीडीए, दिल्ली सरकार और पर्यावरण मंत्रालय तीनों ने ही कहा कि पीपों के पुल बनाने की अनुमति से उनका कोई लेना-देना नहीं है। डीडीए ने कहा कि वह पुल बनाने के लिए केवल अनापत्ति प्रमाणपत्र जारी करता है। दिल्ली सरकार ने कहा कि केवल बाढ़ के दिनों में पीपों के पुलों को लेकर उनकी भूमिका सामने आती है। जबकि पर्यावरण मंत्रालय ने कहा कि यह सवाल जल संसाधन मंत्रालय से पूछा जाना चाहिए। डीडीए की ओर से पीठ के समक्ष उपस्थित हुए एडवोकेट राजीव बंसल ने कहा कि डीडीए ने इस शर्त पर अनुमति दी थी कि वहां कोई स्थाई ढांचा न खड़ा किए जाए। उन्होंने कहा कि वह इलाका मनोरंजन गतिविधियों के लिए है और डीडीए को उस इलाके की सक्षम एजेंसी हैं।
डीडीए ने यह भी कहा कि काम काफी आगे निकलने के बाद इसे रोकने के अर्जी दाखिल की गई। यह दलील भी दी गई कि यमुना खादर पर लगातार निगरानी रखी जा रही है और वहां कोई भी मलबा या निगम का कचरा नहीं डाला जा रहा है। बंसल ने कहा कि अक्टूबर, नवंबर, दिसंबर से लेकर जब आयोजकों को जमीन सौंपी गई तब तक वहां कोई मलबा नहीं था।
इस पर एनजीटी ने कहा कि वह मलबा नहीं है, कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकती क्योंकि मौके की तस्वीरों में मलबा साफ नजर आ रहा है। डीडीए ने यह भी साफ किया कि वहां 24.44 हेक्टेयर जमीन की अनुमति दी गई जहां करीब साढ़े तीन लाख से पांच लाख तक लोगों के आने की संभावना जताई गई थी और अभी तक आयोजकों की ओर से किसी तरह का उल्लंघन नजर नहीं आ रहा है।
पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार से भी पूछा कि उसने किस हैसियत और नियमों के तहत यमुना के पूर्वी छोर पर पार्किंग के लिए जमीन आवंटित की? क्या पार्किंग की अनुमति यमुना खादर में दी गई है? क्या आयोजक ने दी गई अनुमति से ज्यादा जमीन का इस्तेमाल किया। आवंटित जमीन से मलबा हटाने के लिए उप्र सरकार के सिंचाई विभाग ने कितना पैसा खर्च किया?
सिंचाई विभाग ने कहा कि आवंटित इलाके में कोई मलबा नहीं था, इसलिए खर्चे का कोई सवाल ही नहीं उठता। विभाग के अधिवक्ता ने कहा कि उस अधिसूचना के आधार पर अनुमति दी गई जिसके तहत नॉन-मानसून के समय यमुना खादर में पार्किंग के लिए जमीन आवंटित की जा सकती है और इससे न पर्यावरण को कोई नुकसान पहुंचेगा और न ही इसके लिए किसी ढांचे को खड़ा करने की जरूरत है। इस पर पीठ ने सवाल किया कि क्या जहां हजारों कारों से धुंआ निकलेगा, वहां कोई पर्यावरण में कोई प्रदूषण नहीं होगा।
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