मकर संक्रान्ति के अवसर पर आगामी 15 जनवरी से एक माह तक चलने वाला खिचड़ी मेला में दुकाने सज गयी हैं। उत्तर प्रदेश में गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर में इस मेले में पड़ोसी देश नेपाल के अलावा बिहार से भी हजारों श्रद्धालु यहां बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी, तेल, चावल, गुड़, नमक और घी आदि चढ़ाते हैं।
ग्राहकों को लुभाने के लिए दुकानें सज चुकी हैं। परम्परागत वस्तुओं के साथ दुकानों में सजावटी सामानों की भी भरमार है। परम्परागत सामानों की खासियत यह होती है कि यह गुड़, चीनी, मूंगफली, तिल, लायी तथा रामदाने से बनाए जाते हैं और महीनों खराब नहीं होते हैं।
आगरा का तिल लड्डू, बिहार का तिलकुट, बंगाल का रामदाना, कानपुर की गजक एवं लखनऊ की रेवडी इस बार लोगों को खूब भा रही है। आस पास के जिलों में मकर संक्रांति से पहले परिजन अपनी बहन और बेटियों के ससुराल में चूडा, लायी, गुड और तिल से तैयार मिष्ठान आदि भेजने की पुरानी परम्परा को आज भी कायम रखे हुए हैं।
पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार तथा पड़ोसी देश नेपाल में यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। परम्परा के मुताबिक लोग इस त्योहार पर इन वस्तुओं की खरीददारी कर रिश्तेदारों विशेषकर बहन और बेटियों के ससुराल में भेजते हैं। इस बार दुकानदार आकर्षक पैंकिंग में तिलकुट और पट्टी की बिक्री कर रहे हैं।
गोरखनाथ मंदिर के विद्वतजनों एवं प्रयाग ज्योतिष विद्यापीठ एवं रत्न शोध परिषद के निदेशक पंडित रमेश चन्द्र शुक्ल के अनुसार मकर संक्रान्ति हर साल 14 जनवरी को मनाया जाता है लेकिन सूर्य का मकर राशि में प्रवेश 15 जनवरी को तड़के हो रहा है इसलिए खिचड़ी का पर्व इस साल 15 जनवरी को मनाया जाएगा।
श्री शुक्ल ने बताया कि मकर संक्रांति जहां समाज और ज्योतिष से जुड़ा पर्व है वहीं यह सीधे तौर पर विज्ञान और सूर्य से जुड़ा है। ज्योतिष के अनुसार सूर्य इस दिन धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। पौरणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन पवित्र नदियों में स्नान के बाद सूर्य को अध्र्य देकर तिल गुड़ से तैयार मिष्ठान, चावल और दाल का दान करते हैं। सूर्यपुराण के अनुसार मकर संक्रांति दान-पुण्य का पर्व मात्र नहीं है यह जीवन में परिवर्तन लाने का भी पर्व है।
ग्राहकों को लुभाने के लिए दुकानें सज चुकी हैं। परम्परागत वस्तुओं के साथ दुकानों में सजावटी सामानों की भी भरमार है। परम्परागत सामानों की खासियत यह होती है कि यह गुड़, चीनी, मूंगफली, तिल, लायी तथा रामदाने से बनाए जाते हैं और महीनों खराब नहीं होते हैं।
आगरा का तिल लड्डू, बिहार का तिलकुट, बंगाल का रामदाना, कानपुर की गजक एवं लखनऊ की रेवडी इस बार लोगों को खूब भा रही है। आस पास के जिलों में मकर संक्रांति से पहले परिजन अपनी बहन और बेटियों के ससुराल में चूडा, लायी, गुड और तिल से तैयार मिष्ठान आदि भेजने की पुरानी परम्परा को आज भी कायम रखे हुए हैं।
पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार तथा पड़ोसी देश नेपाल में यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। परम्परा के मुताबिक लोग इस त्योहार पर इन वस्तुओं की खरीददारी कर रिश्तेदारों विशेषकर बहन और बेटियों के ससुराल में भेजते हैं। इस बार दुकानदार आकर्षक पैंकिंग में तिलकुट और पट्टी की बिक्री कर रहे हैं।
गोरखनाथ मंदिर के विद्वतजनों एवं प्रयाग ज्योतिष विद्यापीठ एवं रत्न शोध परिषद के निदेशक पंडित रमेश चन्द्र शुक्ल के अनुसार मकर संक्रान्ति हर साल 14 जनवरी को मनाया जाता है लेकिन सूर्य का मकर राशि में प्रवेश 15 जनवरी को तड़के हो रहा है इसलिए खिचड़ी का पर्व इस साल 15 जनवरी को मनाया जाएगा।
श्री शुक्ल ने बताया कि मकर संक्रांति जहां समाज और ज्योतिष से जुड़ा पर्व है वहीं यह सीधे तौर पर विज्ञान और सूर्य से जुड़ा है। ज्योतिष के अनुसार सूर्य इस दिन धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। पौरणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन पवित्र नदियों में स्नान के बाद सूर्य को अध्र्य देकर तिल गुड़ से तैयार मिष्ठान, चावल और दाल का दान करते हैं। सूर्यपुराण के अनुसार मकर संक्रांति दान-पुण्य का पर्व मात्र नहीं है यह जीवन में परिवर्तन लाने का भी पर्व है।
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