भोपाल। बॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री साधना का शुक्रवार को निधन हो गया। वे 74 साल की थीं। साधना लंबे समय से बीमार थीं। शुक्रवार सुबह करीब 11.30 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। प्रस्तुत है इस विलक्षण अभिनेत्री पर अशोक मनवानी की सिंधी में प्रकाशित पुस्तक सुहिणी साधना से कुछ बातें।
वर्ष 1970 का वाकया है। मध्यप्रदेश के सागर शहर में मनोहर टाकीज में मेरा साया का शो चल रहा था। फिल्म दूसरी बार लगी थी। लेकिन झुमका गिरा रे, बरेली के बाजार में गीत के लिए सिनेप्रेमी उमड़ पड़े थे। सिनेमा ऑपरेटर फिल्म के पहले और इंटरवल में स्लाइड दिखाते कि, कृपया परदे पर सिक्के न फेंके, आग लग सकती है! परंतु दर्शक कहां मानने वाले थे। शो पूरा होने पर सफाईकर्मी एक-दो झोला चिल्लर साथ ले जाते।
साधना शिवदासानी जो विवाह के बाद साधना नैयर बनीं, हिंदी सिनेमा में ऐसी इकलौती नायिका रहीं, जिन्होंने चार फिल्मों में दोहरी भूमिका की। चार-पांच किस्म के फैशन चलाए। दोहरी भूमिकाओं में अभिनय कर उन्होंने अलग छाप छोड़ी। विशेषकर मेरा साया, दूल्हा दुल्हन, वो कौन थी के दृश्य याद करें। साधना कट हेयर स्टायल के अलावा आंखों में तिरछा काजल, चूड़ीदार पायजामी और सलवार, कानों में बड़े बाले, गरारा और शरारा। साड़ी पहनने, बांधने का साधना का अंदाज भी निराला था। निर्देशक विमल राय, साधना को कला फिल्मों का चेहरा बनाना चाहते थे।
मैंने उनकी बॉयोग्राफी लिखनी चाही, पर साधना को यह रास नहीं आई। वे नहीं चाहती थीं खुद को चर्चा में बनाए रखना। लिहाजा मैंने साधना पर लिखे आलेखों का संकलन तैयार किया। कुछ साल पहले साधना के मौजूदा निवास स्थान से जुड़े विवाद के कारण वे अनचाहे ही एकाध टीवी चैनल पर दिखाई दीं। मामले का पटाक्षेप होने तक अखबारों की सुर्खियों में भी आईं।
इनामों, उसकी राजनीति और फिल्मी महफिलों से दूर साधना गाहे-बगाहे आर्ट क्लब में दिख जाया करती थीं। दिलीपकुमार इस क्लब के प्रमुख रहे हैं। यहां सदस्य भी सीमित ही हैं। जहां एक ओर अनेक कलाकार अपनी मातृभाषा और अपने समुदाय से जुड़े रहते हैं, साधना यहां भी सबसे अलग रहीं।
उनकी पहली फिल्म अबाणा एक सिंधी फिल्म थी, जिसमें वे नायिका शीला रमानी की छोटी बहन के किरदार में आई थीं। कुल जमा पैंतीस फिल्मों का मामला रहा साधना का। फिल्म निर्माण में महिलाओं की भूमिका की चर्चा होती है, तो साधना गीता मेरा नाम (1974) की वजह से याद की जाती रहेंगी।
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