पूरी दुनिया के औद्योगिक इतिहास की सबसे बड़ी दुर्घटना भोपाल गैस
त्रासदी को 2 दिसंबर को पूरे 31 साल हो गए. हालांकि, इस हादसे के दिए जख्म
आज भी उतने ही ताजा हैं जितने 1984 में हादसे के दिन थे.
2 दिसंबर, 1984 एक आम दिन की तरह था, पूरा दिन लोग अपने
रोजमर्रा के काम में ही लगे रहे. किसी ने शायद ही सोचा होगा कि इस आम दिन
की रात मौत की एक धुंध हजारों की जान लेने वाली है.
दो और तीन दिसंबर की दरमियानी रात को यूनियन कार्बाइड के
प्लांट नंबर ‘सी’ में टैंक नंबर 610 में जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस के
साथ पानी मिलना शुरू हुआ.
गैस के साथ पानी मिलने से रासायनिक प्रक्रिया शुरू हो गई.
तीन दिसंबर की अल सुबह तक टैंक में दबाव पैदा हुआ और टैंक खुल गया. टैंक
खुलते ही जहरीली मिथाइल गैस रिसते हुए हवा में घुलना शुरू हो गई.
सूरज उगने से पहले ही महज कुछ घंटों के अंदर गैस हवा के
झोंके के साथ आसपास के इलाके में फैलना शुरू हो गई और रात को सुकून की नींद
सोए लोग मौत की नींद सोते चले गए. लोगों को मौत की नींद सुलाने में विषैली
गैस को औसतन तीन मिनट लगे.
सुबह होने तक जहरीली गैस अपना दायरा बढ़ाती गई और देखते ही
देखते हजारों लोग मौत की भेंट चढ़ गए. सबसे बुरी तरह प्रभावित हुई कारखाने
के पास स्थित झुग्गी बस्ती.
वहां हादसे का शिकार हुए वे लोग थे जो रोज़ी रोटी की तलाश में दूर-दूर के गांवों से आ कर वहां रह रहे थे.
यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी से करीब 40 टन गैस का रिसाव
हुआ था. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस दुर्घटना के कुछ ही घंटों के भीतर
तीन हज़ार लोग मारे गए थे. हालांकि, गैरसरकारी स्रोत मानते हैं कि ये
संख्या करीब तीन गुना ज्यादा थी.
ऐसे किसी हादसे के लिए कोई तैयार नहीं था. यहां तक कि
कारखाने का अलार्म सिस्टम भी घंटों तक बेअसर रहा जबकि उसे बिना किसी देरी
के चेतावनी देना था.
हांफते और आंखों में जलन लिए जब प्रभावित लोग अस्पताल
पहुँचे तो ऐसी स्थिति में उनका क्या इलाज किया जाना चाहिए, ये डॉक्टरों को
मालूम ही नहीं था.
शहर के दो अस्पतालों में इलाज के लिए आए लोगों के लिए जगह
नहीं थी. वहाँ आए लोगों में कुछ अस्थाई अंधेपन का शिकार थे, कुछ का सिर
चकरा रहा था और साँस की तकलीफ तो सब को थी.
शुरू में डॉक्टरों को ठीक से पता ही नहीं था कि क्या किया
जाए क्योंकि उन्हें मिथाइल आइसोसाइनेट गैस से पीड़ित लोगों के इलाज का कोई
अनुभव नहीं था. एक अनुमान के अनुसार पहले दो दिनों में करीब 50 हजार लोगों
का इलाज किया गया.
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