समुन्द्र मंथन के दौरान पारिजात वृक्ष निकला था, इसकी खास बात ये है की इसे मात्र छूने भर से ही छूने वाली की पूरी थकान उतर जाती है. हालाँकि ये मंथन से निकलने के बाद इंद्र के स्वर्ग लोक की शोभा बढ़ता था, अप्सराये नाचने के बाद अपनी थकान इस वृक्ष को छू के ही समाप्त करती थी.
एक बार नारद मुनि स्वर्ग से होते हुए कृष्ण से मिलने आये और उन्होंने इस पेड़ के फूल श्रीकृष्ण को दिए जो की उन्होंने रुक्मणी को दे दिए. इस बात को जान सत्यभामा ने कृष्ण से उस पुरे पेड़ को ही लाने की जिद की तो भगवन को इंद्र से इसके लिए युद्ध करना पड़ा लेकिन सत्यभामा के बगीचे में लगाने के बाद भी इसके फूल रुक्मणी के बगीचे में गिरते थे.
ये दुनिया का एकमात्र पारिजात पेड़ है, न तो इसमें फल लगते है और न ही इसकी कलम ही बोई जा सकती है. इसमें फूल जरूर लगते है लेकिन वो सिर्फ रात के समय में खिलते है, इन पुष्पों को लक्ष्मी पूजा में चढाने का विशेष लघ होता है लेकिन झड़े हुए फूलो का तोड़े हुए फूल वर्जित है.
ये बृक्ष उत्तरप्रदेश के बाराबंकी जिले के गुंटूर गांव में स्थित है, पांडवो ने भी अपने वनवास का समय यंहा कटा था. इस जगह का नाम उनकी माँ कुंती पर पड़ा है, यंहा कुन्तीश्वर नाम का मंदिर भी है.
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