एमपी के बैतूल में परंपरा के नाम पर बेरहमी से गोबर के ढेर में फेंका जाता है. माना जाता है कि ऐसा करने से बच्चें साल भर पूरी तरह से स्वस्थ्य रहते हैं.
गोबर के बीच रोते-बिलखते मासूम बच्चों को देख किसी का भी दिल भर आए, लेकिन उनके माता-पिता को ही उन पर दया नहीं आती. शहर के कृष्णपुरा वार्ड में गोवर्धन पूजा के बाद बच्चों को गोबर में इस लिए डाला जाता है कि बच्चे साल भर तंदुरुस्त रहेंगे. अंधविश्वास के चलते वे खुद ही अपने बच्चों को गोदी में लेकर गोबर के ढेर में फेंक देते हैं.
भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाकर ग्वालों की रक्षा की थीं. तभी से मान्यता हो गई कि गोवर्धन उनकी रक्षा करते है और इसी को लेकर बच्चों को गोबर में डाला जाता है.
वर्षों से चली आ रही इस परम्परा को निभाने के लिए कई दिनों से तैयारी शुरू हो जाती है. गोबर का पहाड़ बनाने के लिए ग्वाल समाज कि महिलाएं सभी घर से गोबर एकत्रित कर गोवर्धन बनाती है.
दीपावली के दूसरे दिन होने वाली इस पूजा में समाज के सभी लोग शामिल होकर पूरे विधि विधान से पूजा करते हैं. गोबर से गोवर्धन पर्वत कि इस प्रतिकृति के पूजन के बाद उसमें छोटे बच्चों को फेंका जाता हैं.
बिलखते बच्चों को गोबर में फेंकने कि इस परम्परा को डॉक्टर जानलेवा करार दे रहे है. डाक्टरों का कहना है कि जिस गोबर में बच्चों को फेंका जाता है वह कई दिनों तक इकठ्ठा किये जाने कि वजह से बैक्टीरियाग्रस्त हो जाता है. इस गोबर के संपर्क में आने से बच्चो को सांस सम्बन्धी बीमारिया और सेप्टिसीमिया जैसी जानलेवा बीमारी हो सकती है.
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