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हिरणों के 5 हजार किलो सींगों से बनाया स्वागत द्वार

OMG ! हिरणों के 5 हजार किलो सींगों से बनाया स्वागत द्वार
 मध्यप्रदेश के कान्हा नेशनल पार्क में हिरण प्रजाति के सींगों से स्वागत द्वार (मेहराब) बनाया गया है. म्यूजियम के पास 5 हजार किलो और लगभग 10 हजार सींगों से बनाया गया द्वार देशी-विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बन गया है.
जानकारी के मुताबिक, हिरण प्रजाति के नर के सिर पर प्रजनन काल के पूर्व हर साल सींग उगते हैं. प्रजनन काल के बाद सींग गिर जाते हैं. कान्हा नेशनल पार्क प्रबंधन ने आजादी के बाद से हिरण, चीतल और सांभर के सीगों को  स्थानीय वनवासियों से एकत्र कराया गया है. जिसे बड़ी संख्या में सींग इकट्ठे कर लिए गए हैं.
इन्ही सींगों से कान्हा जोन में म्यूजियम के पास पार्क प्रबंधन ने स्वागत द्वार तैयार किया है. इसमें 10 हजार 830, लगभग 5 हजार 525 किग्रा सींग लगाए गए हैं.
नेशनल पार्क के फील्ड डायरेक्टर जेएस चौहान ने बताया कि, ग्रामीणों से इकट्ठे  करवाए गए हिरण प्रजाति के चीतल व सांभर के सींग से स्वागत द्वार बनाया गया है. इसके
निर्माण में तकनीकी विशेषज्ञों का सहयोग नहीं लिया गया है.
उन्होंने बताया कि कान्हा पार्क के ही दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों ने एक पखवाड़े में सींग का स्वागत द्वार तैयार किया है. कान्हा देश का पहला नेशनल पार्क बन गया है, जहां वन्य प्राणियों के सींग का आर्च बना है.
बताया गया है कि घास के मैदान में बिखरे हुए सीगों को खोजने के लिए ग्रामीण जंगल में आग लगाते थे. जिससे 1960 के दशक में कान्हा पार्क मेंअग्रिकांड दुर्घटनाएं बढ़ गईं थीं.
वन्य प्राणी खासकर बारहसिंगा के आवासों के लिए आग खतरा बन चुकी थी. जिसके चलते कान्हा पार्क प्रबंधन ने ग्रामीणों से सींग खरीदने की कार्ययोजना बनाई. जिसके बाद से 30 -35 रुपए किलो तक कान्हा प्रबंधन ने सींग खरीदे. इन्ही सींगों से स्वागत द्वार तैयार कराया है.
बताया गया है कि हिरण प्रजाति के वन्य प्राणियों के सींग से कंघी व अन्य सामग्री तैयार की जाती थीं. ग्रामीणों से संग्रहित सींग देश के कोने-कोने की फैक्ट्ररियों को बेचे जाते थे.
जिसके बाद वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 में संशोधन किया गया और सख्ती के चलते सींग से सामग्री बनाने वाले उद्योग बंद हो गए. वहीं, वर्ष 2006 से सींग के संग्रहण का काम बंद करा दिया गया.
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