दिल्ली : प्रख्यात लेखिका और दिवंगत जवाहरलाल नेहरु की भांजी नयनतारा सहगल ने देश में असहमति के अधिकार को लेकर बढती असहनशीलता और ‘‘आतंक के राज' पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘‘चुप्पी' के विरोध में आज साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा दिया. अपने अंग्रेजी उपन्यास ‘रिच लाइक अस' (1985) के लिए 1986 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित की गयी.
सहगल ने कहा, ‘‘आज की सत्ताधारी विचारधारा एक फासीवादी विचारधारा है और यही बात मुझे चिंतित कर रही है. अब तक हमारे यहां कोई फासीवादी सरकार नहीं रही.....मुझे जिस चीज पर विश्वास है, मैं वह कर रही हूं.' एम एम कलबुर्गी और गोविंद पानसरे सहित कई लेखकों और अंधविश्वास के खिलाफ लोगों को जागरुक करने वाले लोगों की हत्या की वारदातों का हवाला देते हुए.
सहगल ने आरोप लगाया, ‘‘अंधविश्वास पर सवाल उठाने वाले तर्कशास्त्रियों, हिंदुत्व के नाम से विख्यात हिंदुवाद से खतरनाक तरीके से छेडछाड करने पर सवाल उठाने वाले को - चाहे वह बुद्धिजीवी हो या कला क्षेत्र से हो - हाशिये पर डाला जा रहा है, उन पर अत्याचार किया जा रहा है और उनकी हत्या तक कर दी जा रही है.' 88 साल की सहगल ने एक बयान जारी कर कहा कि हाल ही में दिल्ली के पास ही स्थित बिसहडा गांव में मोहम्मद अखलाक नाम के एक लोहार की इस वजह से पीट-पीटकर हत्या कर दी गई कि उस पर ‘संदेह था' कि उसके घर में गोमांस पकाया गया है. सहगल ने कहा, ‘‘इन सभी मामलों में न्याय अपना पांव खींच ले रहा है. प्रधानमंत्री आतंक के इस राज पर चुप हैं. हमें यह मान लेना चाहिए कि वह बुरे काम करने वाले ऐसे लोगों को आंखें नहीं दिखा सकते जो उनकी विचारधारा का समर्थन करते हैं. यह दुख की बात है कि साहित्य अकादमी भी चुप्पी साधे हुए है...'
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