देश में कई मंदिर है जहां भक्त बडी आस्था के साथ जाते हैं और अपना सर झुका कर भगवान् का आशीर्वाद लेते है। लेकिन आप ने कभी ऎसा मंदिर देखा है जहां भगवान की मूर्ति नही होती है इस मंदिर में कुत्ते की पूजा किया जाता है। इस मंदिर में मंदिर में एक कुत्ते की प्रतिमा स्थापित है। यहां आने वाले लोगो की मान्यता है की इस मंदिर में आकर कुकुरदेव का पूजन करने वाला मनुष्य कुकुरखांसी तथा कुत्ते के काटने से होने वाले विभिन्न रोगों से सुरक्षित रहता है। राजनंदगांव के बालोद से छह किलोमीटर दूर मालीघोरी खपरी गांव में है। दरअसल यह मंदिर भैरव स्मारक है, जो भगवान शिव को समर्पित है।
इस मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है। मंदिर के शिखर के चारों ओर दीवार पर नागों का अंकन किया गया है। इस मंदिर का निर्माण हालांकि फणी नागवंशी शासकों द्वारा 14वीं-15 वीं शताब्दी में कराया गया था साथ ही आंगन में शिलालेख लगा है। इस पर बंजारों की बस्ती, चंद्रमा, सूर्य देवता, तारों जैसी विभिन्न आकृतियां बनी हुई हैं। यहां भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और शत्रुघ्न की भी प्रतिमा है लेकिन मुख्य पूजन कुत्ते की प्रतिमा का ही होता है।
कुकुरदेव मंदिर के पीछे मान्यता है----
मालीघोरी नाम के बंजारे के पास एक पालतू कुत्ता था। अकाल प़डने के कारण बंजारे को अपने प्रिय कुत्ते को मालगुजार के पास गिरवी रखना प़डा। इसी बीच, मालगुजार के घर चोरी हो गई। कुत्ते ने चोरों को मालगुजार के घर से चोरी का माल समीप के तालाब में छुपाते देख लिया था। सुबह कुत्ता मालगुजार को चोरी का सामान छुपाए स्थान पर ले गया और मालगुजार को चोरी का सामान भी मिल गया। कुत्ते की वफादारी से अवगत होते ही उसने सारा विवरण एक कागज में लिखकर उसके गले में बांध दिया और असली मालिक के पास जाने के लिए उसे मुक्त कर दिया।
अपने कुत्ते को मालगुजार के घर से लौटकर आया देखकर बंजारे ने डंडे से पीट-पीटकर कुत्ते को मार डाला। कुत्ते के मरने के बाद उसके गले में बंधे पत्र को देखकर उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और बंजारे ने अपने प्रिय स्वामी भक्त कुत्ते की याद में मंदिर प्रांगण में ही कुकुर समाधि बनवा दी। बाद में किसी ने कुत्ते की मूर्ति भी स्थापित कर दी। आज भी यह स्थान कुकुरदेव मंदिर के नाम से विख्यात है। - See more at: http://www.khaskhabar.com/picture-news/ajabgajab-amazing-dog-worshiped-in-amazing-temple-must-read-1-67706.html#sthash.4Emc9VSK.dpuf
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