वार्षिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एएचएस) की सर्वे रिपोर्ट में खुलासा हुआ
है कि मध्यप्रदेश में 5-18 साल तक का हर तीसरा बच्चा कुपोषण का शिकार है.
दरसअल, साल 2014 में हुए क्लीनिकल एन्थ्रोपोमेट्रिक एंड बायोकेमिकल (सीएबी) द्वारा आम जनता के बीच में किए गए कॉन्टेस्ट ऑफ बॉडी इंडेक्स सर्वे में भी 5-18 साल तक के कम से कम 16.4 फीसदी बच्चे कुपोषित पाए गए थे.हालांकि, सामाजिक-भौगोलिक पिछड़ेपन की स्थिति पर गौर करें तो उत्तरप्रदेश, राजस्थान, ओड़िसा और बिहार की तुलना में मध्यप्रदेश की काफी सशक्त स्थिति है.
एएसएस के सर्वे में बताया गया है कि, प्रदेश में 5-18 साल तक के 33.6 किशोरों की तुलना में 28.4 प्रतिशत किशोरियां कुपोषण से प्रभावित हैं. हर तीन में से एक बच्चा यानि 31.1 फीसदी बच्चे मध्यप्रदेश में कुपोषित हैं.
इस क्षेत्र में काम करने वालों का मानना है कि मध्यान्ह भोजन के अलावा 6-14 साल तक के बच्चों को पोषित आहार नहीं मिल रहा है. कुल मिलाकर संबंधित विभागों में आर्थिक भ्रष्टाचार ही इसकी मुख्य वजह है.
जानकारों के मुताबिक, प्रदेश के किशोरवय युवाओं में कुपोषण की समस्या बड़ी चिंताजनक है. इससे भविष्य में उनके जैविक और आर्थिक विकास पर बुरा प्रभाव पड़ता है. जबकि यही पीढ़ी आगे जाकर राज्य और देश का भविष्य बनेगी.
भोजन के अधिकार के लिए सालों से संघर्ष कर रहे कार्यकर्ता सचिन जैन का कहना है कि, जब प्रदेश में 3 में से 1 बच्चा कुपोषण का शिकार हैं तब तक हम बड़े विकास के लक्ष्यों को पूरा नहीं कर सकते.
इस मामले में एकीकृत बाल विकास योजना के कमिश्नर कहती हैं कि, उनका विभाग स्कूल में न पढ़ने वाली 11-18 साल तक की किशोरियों के पोषण की जरूरतों को पूरा करता है. जबकि अन्य छात्र-छात्राओं को स्कूलों में मध्यान्ह भोजन के माध्यम से पोषित किया जाता है.
दरसअल, साल 2014 में हुए क्लीनिकल एन्थ्रोपोमेट्रिक एंड बायोकेमिकल (सीएबी) द्वारा आम जनता के बीच में किए गए कॉन्टेस्ट ऑफ बॉडी इंडेक्स सर्वे में भी 5-18 साल तक के कम से कम 16.4 फीसदी बच्चे कुपोषित पाए गए थे.हालांकि, सामाजिक-भौगोलिक पिछड़ेपन की स्थिति पर गौर करें तो उत्तरप्रदेश, राजस्थान, ओड़िसा और बिहार की तुलना में मध्यप्रदेश की काफी सशक्त स्थिति है.
एएसएस के सर्वे में बताया गया है कि, प्रदेश में 5-18 साल तक के 33.6 किशोरों की तुलना में 28.4 प्रतिशत किशोरियां कुपोषण से प्रभावित हैं. हर तीन में से एक बच्चा यानि 31.1 फीसदी बच्चे मध्यप्रदेश में कुपोषित हैं.
इस क्षेत्र में काम करने वालों का मानना है कि मध्यान्ह भोजन के अलावा 6-14 साल तक के बच्चों को पोषित आहार नहीं मिल रहा है. कुल मिलाकर संबंधित विभागों में आर्थिक भ्रष्टाचार ही इसकी मुख्य वजह है.
जानकारों के मुताबिक, प्रदेश के किशोरवय युवाओं में कुपोषण की समस्या बड़ी चिंताजनक है. इससे भविष्य में उनके जैविक और आर्थिक विकास पर बुरा प्रभाव पड़ता है. जबकि यही पीढ़ी आगे जाकर राज्य और देश का भविष्य बनेगी.
भोजन के अधिकार के लिए सालों से संघर्ष कर रहे कार्यकर्ता सचिन जैन का कहना है कि, जब प्रदेश में 3 में से 1 बच्चा कुपोषण का शिकार हैं तब तक हम बड़े विकास के लक्ष्यों को पूरा नहीं कर सकते.
इस मामले में एकीकृत बाल विकास योजना के कमिश्नर कहती हैं कि, उनका विभाग स्कूल में न पढ़ने वाली 11-18 साल तक की किशोरियों के पोषण की जरूरतों को पूरा करता है. जबकि अन्य छात्र-छात्राओं को स्कूलों में मध्यान्ह भोजन के माध्यम से पोषित किया जाता है.
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