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संघ की गतिविधियों में सरकारी कर्मचारियों की भागीदारी पर अनावश्यक बहस

कृष्णमोहन झा

शासकीय कर्मचारियों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों में भाग लेने से रोकने के लिए उन पर जो प्रतिबंध लगभग 58 वर्ष पूर्व केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा  लगाया गया था उसे वर्तमान केन्द्र सरकार ने हटा दिया है। शासकीय कर्मचारी संघ अब संघ की गतिविधियों और कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए स्वतंत्र होंगे। संघ के प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने सरकार के इस निर्णय का स्वागत करते हुए कहा है कि आर एस एस 99 साल से राष्ट्र निर्माण और समाज की सेवा के काम में लगा हुआ है । पिछली सरकारों ने अपने राजनीतिक हितों के लिए, आर एस एस जो कि एक सांस्कृतिक और सामाजिक संगठन है,की गतिविधियों में सरकारी कर्मचारियों के भाग लेने पर प्रतिबंध लगा दिया था। उस प्रतिबंध को हटाने का वर्तमान केन्द्र सरकार का यह निर्णय देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत‌ करेगा। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और  वर्तमान में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी सरकार के इस निर्णय पर अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि आर एस एस राष्ट्र के पुनर्निर्माण निर्माण का आंदोलन है। संघ अपने लिए नहीं बल्कि देश और समाज के लिए जीने वाले कर्मठ , चरित्रवान और देशभक्त कार्यकर्ता तैयार करता है।ये कार्यकर्ता समाज के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करते हैं। शिवराज सिंह चौहान ने इस फैसले के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रति आभार व्यक्त किया है। यहां यह भी विशेष उल्लेखनीय है कि संघ ने शासकीय कर्मचारियों को उसकी गतिविधियों में भाग लेने से रोकने वाला प्रतिबंध हटाने का कोई अनुरोध सरकार से नहीं किया था।यह फैसला केंद्र सरकार ने स्वविवेक से किया है। गौरतलब है कि सन् 2000 में तत्कालीन सरसंघचालक प्रोफेसर राजेंद्र सिंह ने सरकारी कर्मचारियों के संघ की गतिविधियों में भाग लेने अथवा न लेने की कार्य वाही में हस्तक्षेप न करते हुए  इसके निर्णय का अधिकार सरकारों पर छोड़ दिया था। वर्तमान संघ प्रमुख मोहन भागवत ने 2014 में हरिद्वार में आयोजित एक बैठक में कहा था कि" हम सरकार से ऐसी कोई मांग नहीं करने जा रहे।हम अपना काम कर रहे हैं। हमारा काम ऐसे किसी अवरोध से नहीं रुकता। " यह बात सही है कि हाल के वर्षों में संघ की किसी भी बैठक में  यह मुद्दा विचार के लिए नहीं उठाया गया लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि संघ का शताब्दी वर्ष प्रारंभ होने के लगभग तीन माह पूर्व केंद्र सरकार ने शासकीय कर्मचारियों को संघ की गतिविधियों में भाग लेने की अनुमति देने वाला फैसला लेकर एक स्वागतेय कदम उठाया है।

         

केंद्र सरकार के उक्त निर्णय की उन विपक्षी दलों द्वारा आलोचना की जा रही है जिनका हमेशा से ही पूर्वाग्रह रहा है। ऐसे विपक्षी दल आखिर यह क्यों भूल जाते हैं कि अतीत में एकाधिक अवसरों पर न्यायालय  भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को गैर- राजनीतिक और सांस्कृतिक संगठन बता चुके हैं।1967 में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एक शासकीय कर्मचारी को आर एस एस की गतिविधियों में भाग लेने के कारण पद से हटाने के सरकार के आदेश को निरस्त करते हुए कहा था कि आर एस एस राजनीतिक संगठन नहीं है अतः उसकी गतिविधियों में भाग लेना गैरकानूनी नहीं है।इसी तरह 1966 में मैसूर हाईकोर्ट ने एक कर्मचारी की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि प्रथम दृष्टया आर एस एस गैर राजनीतिक एवं सांस्कृतिक संगठन है जो किसी भी गैर हिन्दू के प्रति द्वेष अथवा घृणा की भावना से मुक्त है। कोर्ट ने कहा कि संघ ने भारत में लोकतांत्रिक पद्धति को स्वीकार किया है अतः उसकी गतिविधियों में भाग लेने के कारण किसी कर्मचारी को सेवा से मुक्त किए जाने का निर्णय ग़लत है। मैसूर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को उस कर्मचारी की सेवाएं बहाल करने का फैसला सुनाया था।

              

अबकि केंद्र सरकार शासकीय कर्मचारियों को संघ की गतिविधियों में भाग लेने से रोकने वाला 58 साल पुराना प्रतिबंध हटा दिया है, संघ के विचारों से सहमति रखने वाले शासकीय कर्मचारियों में हर्ष व्याप्त है वहीं दूसरी ओर कुछ विपक्षी दल सरकार के इस फैसले की आलोचना करते हुए यह भी कह रहे हैं कि यह फैसला संघ और सरकार के बीच कुछ समय से जारी विवाद को शांत करने के इरादे से किया गया है। इसमें दो राय नहीं हो सकती कि सरकार ने यह फैसला पहले ही ले लिया होता तो शायद विपक्षी दलों को ऐसी टीका करने का मौका हाथ नहीं लगता लेकिन फिर भी इसे  देर से लिया गया सही फैसला कहना ग़लत नहीं होगा। जो विपक्षी दल संघ कीप विचारधारा से असहमत होकर इस फैसले की आलोचना कर रहे हैं उन्हें सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के लिए समर्पित संघ के  99 वर्षों के सफर में व्यक्ति निर्माण से लेकर राष्ट्र निर्माण से जुड़े क्षेत्रों में उसके उत्कृष्ट  योगदान पर गंभीरता से चिंतन करना चाहिए। युद्ध काल हो अथवा अभूतपूर्व विश्व व्यापी कोरोना संकट  हो, संघ के कार्य कर्ताओं ने हमेशा सेवा कार्यों में तत्परता पूर्वक आगे आकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। इस समय संघ के द्वारा देश भर में लगभग दो लाख सेवा प्रकल्प संचालित किए जा रहे हैं। संघ अपने पचास से अधिक आनुषंगिक संगठनों के माध्यम से समाज के हर वर्ग की सेवा में जुटा हुआ है। राष्ट्र का परम वैभव उसका परम लक्ष्य है। यही कारण है कि संघ ने दुनिया के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन होने का गौरव अर्जित किया है। ऐसे सेवा भावी संगठन की गतिविधियों में भाग लेने से सरकारी कर्मचारियों को रोकने वाला प्रतिबंध हटाने  का सरकार ने जो फैसला किया है उसे देर आयद दुरुस्त आयद कहना ही उचित होगा।








नोट - लेखक राजनैतिक विश्लेषक है। 

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