वाराणसी के पंडितो के अनुसार हर व्यक्ति की शक्ति और श्रद्धा अलग-अलग होती है। इसलिए धर्म शास्त्रों में भक्तों को उन्हीं की शक्ति और श्रद्धा के अनुसार व्रत रखने का संदेश धर्म शास्त्रों में दिया गया है। इसी के साथ जानते हैं कितने प्रकार से भगवान विष्णु का प्रिय एकादशी व्रत रख सकते हैं और किस प्रकार से एकादशी व्रत का पालन करना चाहिए। पंडितो के अनुसार धार्मिक ग्रन्थों में चार प्रकार के एकादशी व्रत का वर्णन है, इसे शुरू करने के संकल्प के साथ ही तय कर लेना चाहिए,
एकादशी व्रत जलाहर
जलाहर का अर्थ है कि केवल जल ग्रहण करते हुए एकादशी व्रत करना। अधिकांश भक्तगण निर्जला एकादशी पर इस व्रत का पालन करते हैं। हालांकि जो भक्त सामर्थ्यवान है वो सभी एकादशियों के व्रत में इस नियम का पालन कर सकते हैं।
एकादशी व्रत क्षीरभोजी
क्षीरभोजी एकादशी व्रत का अर्थ है क्षीर यानी दूध का सेवन करते हुए एकादशी का व्रत रखना। जब क्षीरभोजी एकादशी का संकल्प लेते हैं तो उसमें दूध निर्मित सभी उत्पाद का व्रत के दिन सेवन कर सकते हैं।
फलाहारी एकादशी व्रत
फलाहारी एकादशी व्रत, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, इस व्रत में केवल फल का सेवन करते हुए एकादशी का व्रत रखा जाता है। इस व्रत में आम, अंगूर, केला, बादाम और पिस्ता आदि फल को ही ग्रहण करने चाहिए। इसमें पत्तेदार शाक-सब्जियों का सेवन नहीं करना चाहिए।
नक्तभोजी एकादशी व्रत
नक्तभोजी एकादशी व्रत का अर्थ है कि सूर्यास्त से ठीक पहले दिन में एक समय फलाहार ग्रहण कर सकते हैं। हालांकि इस एकल आहार में सेम, गेहूं, चावल और दालों सहित ऐसे किसी भी प्रकार का अन्न और अनाज को शामिल नहीं करना चाहिए, जिसे एकादशी उपवास में निषिद्ध माना गया है।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार एकादशी व्रत के समय नक्तभोजी के मुख्य आहार में साबूदाना, सिंघाड़ा, शकरकंदी, आलू और मूंगफली आदि का सेवन कर सकते हैं।
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