Dharmik News: शारदीय नवरात्र प्रारंभ हो गए हैं। इस दौरान मप्र की राजधानी भोपाल के समीप सलकनपुर देवी मंदिर में लाखों लोग देवी दर्शन के लिए प्रदेश सहित देश भर से आते हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना बंजारों ने की थी। यहां देवी मंदिर 1000 फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। मंदिर पर पहुंचने के लिए भक्तों को 1400 सीढ़ियों का रास्ता पार करना पड़ता है। जबकि इस पहाड़ी पर जाने के लिए कुछ वर्षों में सड़क मार्ग भी बना दिया गया है।
मां विजयासन के दरबार में दर्शनार्थियों की कोई पुकार कभी खाली नहीं जाती है। माना जाता है कि मां विजयासन देवी पहाड़ पर अपने परम दिव्य रूप में विराजमान हैं। विध्यांचल पर्वत श्रंखला पर विराजी माता को विध्यवासिनी देवी भी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार देवी विजयासन माता पार्वती का ही अवतार हैं, जिन्होंने देवताओं के आग्रह पर रक्तबीज नामक राक्षस का वध किया था और सृष्टि की रक्षा की थी। विजयासन देवी को कई लोग कुलदेवी के रूप में भी पूजते हैं।
शुरू से ही लोगों के मन में मां विजयासन धाम की उत्पत्ति, प्राकट्य, मंदिर निर्माण को लेकर जिज्ञाषा रही है, लेकिन अभी तक इसके कोई भी ठोस साक्ष्य और प्रमाण नही मिल पाए हैं। कुछ पंडितो का कहना है कि यहां मां का आसन गिरने से यह विजयासन धाम बना, लेकिन विजय शब्द का योग कैसे हुआ, इसका सटीक उत्तर वे नहीं दे पाएं है, लेकिन मां विजायासन धाम के प्राकट्य का का सटीक उत्तर व उल्लेख श्रीमद् भागवत महापुराण में है।
सलकनपुर मंदिर
श्रीमद् भागवत कथा के अनुसार जब रक्तबीज नामक दैत्य से त्रस्त होकर देवता देवी की शरण में पहुंचे, तो देवी ने विकराल रूप धारण कर लिया और इसी स्थान पर रक्तबीज का संहार कर उस पर विजय पाई। मां भगवति की इस विजय पर देवताओं ने जो आसन दिया, वही विजयासन धाम के नाम से विख्यात हुआ। मां का यह रूप विजयासन देवी कहलाया।
बंजारों ने कराया था निर्माण
मंदिर निर्माण के संबंध में कहा जाता है कि आज से करीब 300 वर्ष पूर्व बंजारो द्वारा उनकी मनोकामना पूर्ण होने पर इस मंदिर का निर्माण किया गया था। मंदिर निर्माण और प्रतिमा मिलने की इस कथा के अनुसार पशुओं का व्यापार करने वाले बंजारे इस स्थान पर विश्राम और चारे के लिए रूके। अचानक ही उनके पशु अदृष्य हो गए। बंजारे पशुओं को ढूंडने के लिए निकले, तो उनमें से एक बृद्ध बंजारे को एक बालिका मिली।
बालिका के पूछने पर उसने सारी बात कही। तब बालिका ने कहा कि आप यहां देवी के स्थान पर पूजा-अर्चना कर अपनी मनोकामना पूर्ण कर सकते हैं। बंजारे ने कहा कि हमें नहीं पता है कि मां भगवति का स्थान कहां है। तब बालिका ने संकेत स्थान पर एक पत्थर फेंका। जिस स्थान पर पत्थर फेंका वहां मां भगवति के दर्शन हुए, उन्होने मां भगवति की पूजा-अर्चना की। कुछ ही क्षण बाद उनके खोए पशु मिल गए। मन्नत पूरी होने पर बंजारों ने मंदिर का निर्माण करवाया। यह घटना बंजारों द्वारा बताए जाने पर लोगों का आना शुरू हो गया और वे भी अपनी मन्नत लेकर आने लगे।
प्रमुख शहरों से सलकनपुर धाम की दूरी
सीहोर-80 किमी
भोपाल-80 किमी
इंदौर-160 किमी सीहोर होकर, कन्नोद होकर 120 किमी
जबलपुर-350 ओबेदुल्लागंज होते हुए
ग्वालियर-500 किमी
सागर-290 किमी
उज्जैन-240 सीहोर होते हुए, नेमावर 210
नर्मदापुरम-40 किमी
देवास-210 किमी
दिल्ली-830 किमी
मुंबई-850 किमी
यहां आएं तो यह भी हैं प्रसिद्ध स्थान
सिद्ध गणेश मंदिर उत्तर-पश्चिम दिशा में गोपालपुर गांव में स्थापित है। गणेश मंदिर सीहोर जिला मुख्यालय से 3 किमी दूर है। पौराणिक कथा के अनुसार, यह उज्जैन के विक्रमादित्य के समय का है और मराठा पेशवा बाजीराव के द्वारा नवीनीकृत किया गया है। प्रत्येक बुधवार, बड़ी संख्या में भक्त यहां दर्शन को आते हैं, गणेश चतुर्थी त्यौहार भी यहां लोकप्रिय है।
सरु मारु एक प्राचीन मठ परिसर और बौद्ध गुफाओं का पुरातात्विक स्थल
सरु मारु एक प्राचीन मठ परिसर और बौद्ध गुफाओं का पुरातात्विक स्थल है। यह स्थल सीहोर जिले के बुदनी तहसील के ग्राम पान गुराड़िया के पास स्थित है। मुख्य गुफा में अशोक के दो शिलालेख पाए गए थे, जो अशोक के संपादकों में से एक है, और एक शिलालेख में अशोक के पुत्र महेंद्र कुमार की यात्रा का उल्लेख है। अन्य शिलालेख के अनुसार सम्राट अशोक जब विदिशा में निवास करते थे उस समय उनके द्वारा इस स्थल की यात्रा की थी।
पर्यटन क्षेत्र के रूप में हो रहा विकसित
जिला सीहोर और इसके आसपास के जिलों की ऐतिहासिक धरोहरों, प्राकृतिक और धार्मिक संपत्तियों को ध्यान में रखते हुएए जिले में पर्यटन क्षेत्र के विकास के लिए सीहोर पर्यटन परिषद की स्थापना के लिए पंजीकृत किया गया है। सीहोर पश्चिम रेलवे के भोपाल-रतलाम ब्लाक में स्थित व भोपाल-इंदौर राजमार्ग पर भोपाल से सड़क मार्ग से 35 किमी दूर। हवाई मार्ग से भी राज्य की राजधानी भोपाल से जुड़ा हुआ है।
यहां गणेश मंदिर व सारूमारू की गुफाओं के साथ ही कुंवर चैन सिंह की समाधी शहर से सीहाेर से 2 किमी दूर स्थित है। 1838 में निर्मित आल सेंट चर्च ब्रिटिश स्काटलैंड के चर्च की प्रतिकृति है। सीहोर जिले से होकर गुजरने वाली पार्वती, दुधी नेवज, कोलार, पपनस, कुलास, लोटिया नदियों के तट पर कई ऐतिहासिक साक्ष्य मिलते हैं।
ठहरने के लिए है कई स्थान
जहां विजयासन धाम सलकनपुर में धर्मशाला है, जहां पर 400 से 1000 रुपये में ठहरा जा सकता है। यहां एसी व नान एसी कमरे है। चार निजी होटल है। इसके अलावा वन विभाग का रेस्ट हाउस, कोलार रेस्ट हाउस, सलकनपुर से 35 किमी दूर नर्मदारा पुरम में होटल, रेस्ट हाउस सहित अन्य धर्मशालाएं।
आरती का यह है समय
सलकनपुर ट्रस्ट के अध्यक्ष महेश उपध्याय ने बताया कि सुबह साढ़े 5, दोपहर में साढ़े 12 बजे, शाम को साढ़े 7 बजे। दिन में तीन बार आरती होती है। जबकि नवरात्र के समय में यहां पांच बार आरती होती है। आरती का समय सुबह 5.30, 9.30, दोपहर 11.30, शाम 7.30, रात 9.30 बजे शयन आरती होगी।
2025 में हो जाएगा देवीलोक तैयार
सीहोर स्थित लाखों लोगों की आस्था का केंद्र सलकनपुर अगले दो सालों में देवी लोक के रूप में पूरी तरह विकसित हो जाएगा। मुख्य मंदिर और मंदिर काम्प्लेक्स के पुनर्निर्माण में ही 15 करोड़ से अधिक की राशि खर्च होगी। आधुनिक रोपवे भी साल 2025 तक पूरा होने की उम्मीद है। राज्य सरकार द्वारा यहां 97 करोड़ से अधिक राशि से चौसठ योगिनी प्लाजा और नवदुर्गा कारिडोर सहित तमाम पर्यटक सुविधाओं की स्थापना हो रही है, जो दो साल में पूरा होने की उम्मीद है।
इसके अलावा 70 करोड़ से अधिक के बजट से विभिन्न पर्यटन सुविधाएं जैसे विजिटर काम्प्लेक्स (मणिदीप), मंदिर-सीढ़ी मार्ग के कार्य, पार्किंग जनसुविधा, सामुदायिक काॅम्प्लेक्स और पैदल यात्रियों के लिए पाथ-वे आदि बन रहे हैं। लगभग 14 करोड़ की राशि से चौसठ योगिनी प्लाजा, लगभग 21 करोड़ से नवदुर्गा कॉरिडोर और लगभग 6 करोड़ से फाउंटेन आफ लाइट का निर्माण होगा। इस समय निर्माण कार्य प्रगति पर है, जो मई 2025 तक पूर्ण होने की उम्मीद है।
मुख्य मंदिर का लाल पत्थरों से सुंदरीकरण
सप्त मातृका, महाविद्या थीम पर महाकाली, तारा, छिन्नमस्ता, सुंदरी, बगला, मातंगी, भुवनेश्वरी, सिद्ध विद्या, भैरवी और धूमावती की झांकियों का प्रदर्शन होगा। मुख्य मंदिर का लाल पत्थरों से सुंदरीकरण, फाउंटेन प्लाजा और भक्ति मार्ग के रूप में एक प्लाजा का निर्माण होगा। पर्याप्त प्रकाश की व्यवस्था और सुरक्षा की दृष्टि से पब्लिक एड्रेस सिस्टम और सीसीटीवी लगेगा। सभी कार्य अप्रैल 2025 तक पूरे हो जाएंगे।
नया रोप-वे हर घंटे 1500 श्रद्धालुओं को पहुंचाएगा मंदिर
लगभग 1500 मीटर लंबा रोप-वे मोनोकेबल डिटैचेबल गोंडोला तकनीक से बनेगा। यह हर घंटे अधिकतम 1500 लोगों को मंदिर पहुंचाएगा। मंदिर पहुंचने में मात्र 10 मिनट लगेंगे। 70 करोड़ से बन रहा रोप-वे मई 2025 में तैयार होगा। इसके 3 स्टेशन होंगे। करीब 44 करोड़ के बजट से टायलेट ब्लाक, ड्राइवर डोरमेटरी, प्रवेश द्वार, पहाड़ी के नीचे 102 दुकानें, पाथ-वे, रेलिंग और फेंसिंग जैसे काम किए जा रहे हैं। ये काम लगभग 95 फीसद पूरे हो गए हैं। अब तक मुख्य मंदिर द्वार के बाद पहाड़ी पर ही पूजा-प्रसाद की दुकानें थीं। इमरजेंसी रोड, इमरजेंसी पार्किंग, ईवी चार्जिंग पॉइंट, वाहनों के लिए ड्रापिंग पाइंट, कतार में लगने के लिए हाल आदि भी विकसित होंगे।
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