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मणिपुर यौन हिंसा मामले में पीड़ितों का बयान दर्ज करने पर लगी रोक



दिल्ली, 01 अगस्त| उच्चतम न्यायालय ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को निर्देश दिया कि वह मंगलवार को सुनवाई पूरी होने तक मणिपुर यौन हिंसा वायरल वीडियो मामले की दो बलात्कार पीड़िताओं से न तो बातचीत करे और न ही उनके बयान दर्ज करे। शीर्ष अदालत ने इस मामले में पीड़ित महिलाओं की याचिकाओं पर सोमवार को सुनवाई की थी और आगे की सुनवाई के लिए आज (मंगलवार) अपराह्न दो बजे का समय मुकर्रर की थी। 


मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता बन वाली तीन सदस्यीय पीठ ने दो पीड़ित महिलाओं की ओर से इस मामले में किए गए 'विशेष उल्लेख' पर मौखिक रूप से आदेश जारी किया। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने पीठ की ओर से मौखिक आदेश में कहा, 'चूंकि शीर्ष अदालत मंगलवार को दोपहर दो बजे मामले की सुनवाई करने वाली है। इस वजह से बेहतर होगा कि सीबीआई आज मंगलवार की सुनवाई से पहले उन महिलाओं के बयान दर्ज न करे। इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ के समक्ष कहा कहा कि अगर सीबीआई इस मामले में तुरंत बयान दर्ज नहीं करती है तो पीड़ितों का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल हम (सरकार) पर निष्क्रियता का आरोप लगाएंगे और कहेंगे कि हम अपना कर्तव्य नहीं निभा रहे हैं। सिब्बल ने सोमवार को शीर्ष अदालत के समक्ष सरकार की कथित निष्क्रियता के खिलाफ याचिका दायर करने दोनों महिलाओं का पक्ष रखा था। उच्चतम न्यायालय ने मणिपुर जातीय हिंसा के दौरान राज्य में चार मई को दो महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाने के मामले की सुनवाई के दौरान सोमवार को कहा था कि इस दलील के साथ इसे (घटना को) सही नहीं ठहराया जा सकता कि ऐसी घटनाएं अन्य जगहों (राज्यों) पर भी हुई हैं। 


  न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की तीन सदस्यीय पीठ ने मणिपुर में दो महिलाओं के यौन उत्पीड़न के मामले में 'जीरो एफआईआर' (जिसमें आमतौर पर तत्काल प्राथमिकी दर्ज की जाती है) 18 मई को दर्ज करने पर भी सवाल खड़े किए‌थे।   


पीठ ने राज्य सरकार की ओर से पेश सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता से कई सवाल पूछे थे। पीठ ने पूछा घटना के बाद 14 दिनों तक वहां की पुलिस क्या कर रही थी? तत्काल प्राथमिकी दर्ज क्यों नहीं की गई? पुलिस को इसमें क्या दिक्कत थी?   न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ की महिलाओं के यौन उत्पीड़न के मामले को भी मणिपुर के साथ सुनवाई करने की अधिवक्ता बांसुरी स्वराज दलील पर पीठ ने अपना रुख स्पष्ट किया। अधिवक्ता ने हस्तक्षेप याचिका दायर कर दोनों राज्यों से संबंधित मामलों की सुनवाई मणिपुर के साथ करने की गुहार लगाई थी। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने अधिवक्ता की दलील पर कहा था, 'इस में इनकार नहीं किया जा सकता कि पश्चिम बंगाल (और छत्तीसगढ़ ) में भी महिलाओं के खिलाफ अपराध हो रहे हैं, लेकिन यहां (मणिपुर) मामला अलग है। यहां हम सांप्रदायिक हिंसा और इसमें में महिलाओं के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसा के मामले पर सुनवाई कर रहे हैं। मणिपुर में जो हुआ उसे हम यह कहकर उचित नहीं ठहरा सकते कि कुछ इसी तरह की घटना कहीं (पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़) और हुई।' पीठ की ओर से प्राथमिकी दर्ज करने में देरी को लेकर पूछे गए सवालों पर श्री मेहता ने राज्य सरकार का पक्ष रखा था। उन्होंने शीर्ष अदालत को बताया कि वीडियो वायरल (दो निर्वस्त्र महिलाओं से संबंधित) होने के 24 घंटे के भीतर सात आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। उस थाने में 20 प्राथमिकी दर्ज की गईं। इसी प्रकार राज्य भर में 6000 से अधिक मुकदमे दर्ज किए गए हैं। गौरतलब है कि शीर्ष अदालत ने मणिपुर के आपत्तिजनक वीडियो 19 जुलाई 2023 को वायरल होने के मामले में पिछले सप्ताह स्वत: संज्ञान लेते हुए कड़ी चेतावनी के साथ केंद्र सरकार और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया था। केंद्र सरकार ने 27 जुलाई को अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि हिंसा और महिलाओं के यौन उत्पीड़न से संबंधित मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दी गई हैं। केंद्र सरकार ने इसके साथ ही हिंसा से जुड़े सभी मामलों की सुनवाई किसी अन्य राज्य में कराने की भी गुहार शीर्ष अदालत से लगाई है।

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