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होलाष्टक के 8 दिनों को क्यों माना जाता है अशुभ

 होलाष्टक के 8 दिनों को क्यों माना जाता है अशुभ

प्रत्येक साल फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन होली का पर्व मनाया जाता है। होली के आठ दिन पहले अष्टमी तिथि से होलाष्टक शुरू हो जाता है। इसका समापन पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन के दिन होता है। शास्त्रों के अनुसार होलाष्टक के आठ दिनों में मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है। होली से इन कार्यों को शुरू किया जाता है, लेकिन क्या आप होलाष्टक के पीछे का कारण जानते हैं।

होलाष्टक 8 दिन का होता है। इस साल यह 9 दिनों तक रहेगा। यह 27 फरवरी से शुरू होकर 7 मार्च को समाप्त होगा।



क्यों माना जाता है होलाष्टक अशुभ

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार होलाष्टक की अवधि में आठ ग्रह उग्र अवस्था में रहते हैं। अष्टमी तिथि को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी पर शनि, एकादशी पर शुक्र, द्वादशी पर गुरु, त्रयोदशी तिथि पर बुध, चतुर्दशी पर मंगल और पूर्णिमा तिथि के दिन राहु उग्र स्थिति में रहते हैं। इस अवधि में किए गए मांगलिक कार्यों पर ग्रहों का दुष्प्रभाव पड़ता है। जिसका नकारात्मक प्रभाव 12 राशियों पर भी पड़ सकता है।


होलाष्टक का वैज्ञानिक कारण

इस अवधि में मौसम में परिवर्तन आता है। सूरज की रोशनी तेजी हो जाती है। साथ ही ठंडी हवा चलती है। जिसके कारण लोग बीमार होने लगते हैं और मन विचलित रहता है। इस स्थिति में मांगलिक कार्य को करना अशुभ माना जाता है। होलाष्टर की अवधि में व्यक्ति को पूजा-पाठ और व्रत रखना चाहिए।


होलाष्टक से जुड़ी पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, दैत्यराज हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद भगवान श्रीहरि का भक्त था। वह हर समय विष्णु जी की भक्ति में लीन रहता था। भक्ति को तोड़ने के लिए और उसकी हत्या के लिए दैत्यराज अपने पुत्र को होलाष्टक के इन आठ दिनों में कठोर यातना देता रहा। अंतिम दिन जब प्रलाद की बुआ होलिका उससे गोद में लेकर चिता में बैठी तो भगवान विष्णु की कृपा से वह बच गया, लेकिन होलिका आग में जलकर भस्म हो गई। इसी कारण इन 8 दिनों को अशुभ माना जाता है।

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