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भद्रा योग क्या है, किस स्थि‍ति में मिलता है इसका शुभ या अशुभ फल

किसी भी मांगलिक कार्य में भद्रा योग का विशेष ध्यान रखा जाता है। भद्रा काल में मंगलिक कार्य या उत्सव का आरम्भ या समाप्ति अशुभ मानी जाती है। भद्रा काल की अशुभता को मानकर कोई भी आस्थावान व्यक्ति शुभ कार्य नहीं करता। भोपाल के ज्योतिषाचार्य एंव हस्तरेखर्विंद विनोद सोनी पौद्दार जी से जानते हैं क्या होती है भद्रा ? क्यों इसे अशुभ माना जाता है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार भद्रा सूर्य देव की पुत्री और यमराज और शनिदेव की बहन है। शनिदेव की तरह ही इनका स्वभाव भी क्रोधी बताया गया है। उनके स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही ब्रह्मा जी ने उन्हें कालगणना या पंचाग के एक प्रमुख अंग विष्टी करण में स्थान दे दिया है। भद्रा की स्थिति में कुछ शुभ कार्यों, यात्रा आदि कार्यों को निषेध माना गया। भद्रा काल में तंत्र कार्य, अदालत,क़ानूनी और राजनैतिक चुनाव कार्यों में सुफल देने वाला माना गया हैं।


पंचांग में भद्रा का क्या महत्व?

हिन्दू पंचांग के पांच प्रमुख अंग होते हैं। यह हैं - तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण। इनमें करण एक महत्वपूर्ण अंग होता है। यह तिथि का आधा भाग होता है। करण की संख्या 11 होती है। यह चर और अचर में बांटे गए हैं। चर या गतिशील करण में बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि गिने जाते हैं। अचर या अचलित करण में शकुनि, चतुष्पद, नाग और किंस्तुघ्न होते हैं। इन 11 करणों में सातवें करण विष्टि का नाम ही भद्रा है। यह सदैव गतिशील होती है। हिन्दू पंचाग शुद्धि में भद्रा काल का विशेष महत्व होता है। वैसे तो भद्रा का शाब्दिक अर्थ है कल्याण करने वाली लेकिन इस अर्थ के विपरीत भद्रा या विष्टी करण में शुभ कार्य निषेध बताए गए हैं।


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