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रेवड़ियां बांटने की चुनावी रणनीति टाइम बम की तरह-चुनाव आयोग

 

भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यहां होने वाले चुनाव मात्र चुनाव नहीं हैं, अपितु प्रबंधन का बहुत बड़ा उदाहरण हैं। इन्हें कुशलता से संपन्न कराना चुनाव आयोग की जिम्मेदारी होती है। ऐसे में जब चुनावों में लुभावने वादों के जरिये मतदाताओं को प्रभावित करने के मामले देखने में आते हैं, तो मन में प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या ये वादे निष्पक्ष चुनाव की राह में बाधा नहीं हैं? वस्तुत: यह प्रश्न बहुत लंबे समय से हम सभी के समक्ष है। लेकिन इसका कोई सर्वमान्य समाधान नहीं मिल पाया है।



चुनाव आयोग के अधिकार के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि आयोग को दलों की मान्यता रद करने का अधिकार नहीं है। तब फिर यदि आयोग को लगता भी है तो वह किसी दल पर क्या कार्रवाई कर सकेगा? कुछ लोग कहते हैं कि आखिर चुनाव आयोग ने आपराधिक छवि वाले उम्मीदवारों को लेकर नियम बनाया, तो आज ऐसे उम्मीदवारों के आपराधिक मामले सार्वजनिक रूप से सामने आने तो लगे हैं। यह भी पूरा सच नहीं है।

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