....

जस्टिस वर्मा पथ-प्रदर्शक निर्णय और विचारों के लिये सदैव याद किये जायेंगे - उप राष्ट्रपति धनखड़

 उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा है कि देश के न्याय तंत्र में जस्टिस जे.एस. वर्मा आदर्श रूप में स्थापित हैं। कई संवेदनशील मामलों में उनके द्वारा दिये गये फैसले उनकी सोच को परिलक्षित करते हैं। जस्टिस वर्मा को उनके पथ-प्रदर्शक निर्णयों और विचारों के लिये सदैव याद किया जायेगा। उनके जीवन और विचार हमें और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करते रहेंगे। जस्टिस वर्मा की न्यायिक सोच की प्रवृत्ति ने नये आयाम और कई प्रतिमान गढ़े हैं। उप राष्ट्रपति श्री धनखड़ ने यह बात आज जबलपुर के मानस भवन में जस्टिस जे.एस. वर्मा स्मृति व्याख्यानमाला को संबोधित करते हुए कही।

राज्यपाल मंगुभाई पटेल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश सर्वश्री संजय किशन कौल एवं जे.के. माहेश्वरी, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमठ, राज्यसभा सांसद विवेक कृष्ण तन्खा, चेयरमैन एमपी स्टेट बार कौंसिल विजय चौधरी और पूर्व महाधिवक्ता एवं सचिव जस्टिस जे.एस. वर्मा स्मृति समिति शशांक शेखर उपस्थित थे।


उप राष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि वे आज यहाँ आकर खुद को गौरवांवित महसूस कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि उप राष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण करने के बाद मुख्यमंत्री चौहान ने मुझे मध्यप्रदेश आने का न्यौता दिया था। उप राष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि न्यायमूर्ति वर्मा 1986 से 1989 के दौरान राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश थे, जबकि मैं बार एसोसिएशन का अध्यक्ष और बार काउंसिल का सदस्य भी रहा। उनका कार्यकाल न्यायिक पारिस्थितिकी तंत्र के उत्थान, पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ाने के साथ चिन्हित किया गया था। सुप्रीम कोर्ट में रहते हुए, उन्होंने कई ऐसे फैसले दिए जिन्होंने समाज को पूर्ण रूप से प्रभावित किया है। विशाखा और अन्य बनाम राजस्थान राज्य और अन्य के अपने ऐतिहासिक फैसले में उन्होंने कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न से महिलाओं को विशिष्ट सुरक्षा प्रदान करने के लिए तंत्र को न्यायिक रूप से संरक्षित किया। इस फैसले में न्यायिक क्षेत्राधिकार की उच्चता का एक और महत्वपूर्ण पहलू है, जिस पर ध्यान देने की जरूरत है। फैसले में उन्होंने प्रतिबिंबित किया "ये निर्देश कानून में बाध्यकारी और लागू करने योग्य होंगे जब तक कि क्षेत्र पर कब्जा करने के लिए उपयुक्त कानून नहीं बनाया जाता है" यह सत्ता के पृथक्करण के सिद्धांत के ईमानदारी से पालन का एक उदाहरण है।

उप राष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि हमारे शास्त्र कहते हैं 'धर्मो रक्षति रक्षितः' 'कानून हमारी रक्षा करता है अगर हम इसकी पवित्रता को बनाए रखते हैं। यह लोकतंत्र और कानून के शासन का 'अमृत' है। व्यापक और अच्छी तरह से प्रचलित धारणा है कि यह स्वस्थ सिद्धांत वर्तमान में तनाव में है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र का सबसे अच्छा पोषण तब होता है जब सभी संवैधानिक संस्थान पूरी तरह से समन्वित होते हैं और अपने-अपने क्षेत्र में सीमित होते हैं।

उप राष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि न्यायाधीशों का सम्मान और न्यायपालिका का सम्मान अहिंसक है, क्योंकि ये कानून के शासन और संवैधानिकता के मूल सिद्धांत हैं। देश में सभी को यह समझने की जरूरत है कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं है। अधिकार और उच्च पदों पर बैठे लोगों को व्यापक जनहित में इसका संज्ञान लेने और लोकतांत्रिक प्रणाली को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। उप राष्ट्रपति ने मीडिया से अपील की कि न्यायपालिका के बारे में रिपोर्टिंग करते समय बेहद सतर्कता बरतें। उन्होंने कहा कि स्व. न्यायमूर्ति जगदीश शरण वर्मा को हमेशा उन पथ-प्रदर्शक निर्णयों और विचारों के लिए याद किया जाएगा, जिन्होंने नागरिकों को सशक्त बनाया है और जन-कल्याण के लिए सरकार और संस्थानों को सक्षम बनाया है।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि जस्टिस जे.एस. वर्मा ने मध्यप्रदेश ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण न्याय जगत का सीना गर्व से चौड़ा किया है। उनकी स्मृति में हुई व्याख्यान माला के लिये सभी को धन्यवाद देता हूँ। जस्टिस वर्मा ने अपने फैसलों से ऐसे उदाहरण पेश किये जिसको देश कभी भूल नहीं सकता। उनके फैसलों ने यह स्थापित किया कि रूल ऑफ लॉ और रूल बाय लॉ को कैसे फॉलो किया जाता है। वर्ष 1997 में महिलाओं के गौरवपूर्ण जीवन जीने के लिये मौलिक अधिकार को सुरक्षित बनाने वाला फैसला विशाखा केस मे आया था। कामकाजी महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकने के लिये विशाखा गाइड लाइन के रूप में लागू की गई। उसके आधार पर संसद ने क्रिमिनल लॉ में कई संशोधन किये थे, वह मील का पत्थर साबित हुये। मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि निर्भया काण्ड जैसी घटनाएँ नहीं हो इसके लिये जस्टिस वर्मा ने जो योगदान दिया है, उसे देश कभी भूला नहीं पाएगा।

मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि न्याय पालिका के विस्तार एवं महिलाओं के हक के लिये वर्ष 2012 में जो अनुशंसा की गई है उसके लिये देश सदैव ऋणी रहेगा। मुख्यमंत्री ने हाल ही में भोपाल में बच्ची के साथ हुई घटना का जिक्र करते हुये कहा कि बच्चों के साथ जो अनैतिक घटनाएँ घटित होती है, उसमें 90 प्रतिशत परिचित एवं उनके रिश्तेदारों द्वारा की जाती है। प्रदेश में कानून बनाया गया है कि मासूम बच्चियों के साथ दुराचार करने वालों को फाँसी दी जाएगी। आम आदमी आज आँख बंद कर न्यायपलिका पर भरोसा करता है। हमने यह व्यवस्था बनाई है कि इस तरह के अपराधों को चिन्हित अपराध की श्रेणी में शामिल कर रिकॉर्ड समय में कठोर सजा दें। उन्होंने कहा कि न्याय की भाषा मातृ भाषा क्यों नहीं हो सकती है इस पर विचार करने की आवश्यकता है। इसके लिये अटल बिहारी वाजपेयी को धन्यवाद देता हूँ, जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र में हिन्दी में भाषण दिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी अपनी भाषा में बात करते हैं। उन्होंने बताया कि प्रदेश में मेडिकल एवं इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी मातृ भाषा हिन्दी में कराई जाएगी।

व्याख्यान माला में जस्टिस माहेश्वरी ने अपने संस्मरण बताते हुए कहा कि नवम्बर 1985 में जब वे वकील बने, उनकी पहली सुनवाई जस्टिस जे.एस. वर्मा की वजह से हुई। अगर वे नहीं आते तो मुझे हाईकोर्ट में जाने का मौका नहीं मिलता। एक बार जब वे क्रिमिनल अपील में बैठे तो वहाँ वकील मौजूद नहीं हुआ। उन्होंने देखा कि कौन नया लड़का बैठा है। उन्होंने मुझसे 11 बजे कहा कि आप 2.30 बजे आइये मैं यह बहस सुनूगा, मैं अचंभित हो गया। मैंने जितना संभव हुआ उतनी बहस इस पर की।

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश श्री रवि मलिमथ ने कहा कि जस्टिस जे.एस. वर्मा द्वारा किये गये महत्वपूर्ण फैसलों में सरोजिनी रामास्वामी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, नीलाबती मेहरा बनाम उड़ीसा राज्य, एस.आर बोम्मई बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एवं विशाखा बनाम राजस्थान राज्य एवं टी.एन. गोडावर्मन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया शामिल है। उन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष का दायित्व भी बखूबी संभाला। मलिमथ ने कहा कि उनका जीवन न्याय के लिये समर्पित रहा। उन्होंने वर्मा के प्रांरभिक जीवन से लेकर उनके वकील, न्यायाधीश, राजस्थान आयोग के अध्यक्ष बनने तक की जीवन यात्रा के बारे में बताया।

जस्टिस कौल ने व्याख्यान माला को संबोधित करते हुए कहा कि जस्टिस वर्मा के फैसले जनहित के लिये जाने जाते हैं। उनके द्वारा किये फैसले प्रेरणदायी है। विशाखा गाइड लाइन के महत्वूपूर्ण निर्णय, नीलाबती बेहरा केस आदि का जिक्र जस्टिस कोल ने किया। उन्होंने कहा कि जस्टिस वर्मा का जीवन अनुशासन आधारित रहा है। उनके फैसलों में सेंस ऑफ हृयूमर, सेंस ऑफ डिसीप्लीन की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। जस्टिस वर्मा ने समाज में महिलाएं किन समस्याओं से जूझती है उन पर फोकस कर फैसले लिये हैं।

सांसद विवेक तन्खा ने कहा कि जस्टिस वर्मा जब 1970- 1980 के दशक में प्रदेश के न्यायाधीश थे। उनके नाम से लोग डरते थे। उनके फैसलों ने जो छाप छोड़ी वह अमिट है। उनके द्वारा दिये गये तर्कों पर बहस करना मेरे लिए बहुत कठिन होता था। उन्होंने जस्टिस वर्मा के साथ अपने अनुभवों को साझा किया।

राज्य सभा सदस्य राजीव शुक्ला, कार्तिकेय शर्मा, लोकसभा सदस्य वी.डी. शर्मा, लोक निर्माण मंत्री गोपाल भार्गव, विधायक अजय विश्नोई, तरूण भनोत, लखन घनघोरिया एवं संजय शर्मा, महापौर जगतबहादुर सिंह अन्नू सहित शुभ्रा वर्मा, अधिवक्ता एवं विधि के छात्र-छात्राएँ मौजूद रहे।

Share on Google Plus

click vishvas shukla

    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

Post a Comment