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केंद्र सरकार के सस्ते बीमा के नियम मे हुए संशोधन

 नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने हाल ही में संसद में 'साधारण बीमा व्यवसाय राष्ट्रीयकरण संशोधन विधेयक' पारित कर दिया। इस विधेयक के पारित होने के बाद यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी सहित साधारण बीमा क्षेत्र की राष्ट्रीयकृत कंपनियों में सरकार की हिस्सेदारी घट जाएगी। इससे साधारण बीमा क्षेत्र की चार प्रमुख कंपनियों के निजीकरण का रास्ता साफ हो गया है। नए संशोधन विधेयक में प्रावधान किया गया है कि अब इन बीमा कंपनियों में 51 प्रतिशत सरकारी स्वामित्व की शर्त को समाप्त कर दिया गया है।



सरकार द्वारा लाए गए सामान्य बीमा व्यापार (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम 1972 में जिन संशोधनों को मंजूर किया गया, उ️नमें यह भी शामिल है। साल 1972 में जनरल इंश्योरेंस कंपनियों का राष्ट्रीयकरण किया गया था। इस दौरान 10️7 इंश्योरेंस कंपनियों को मिलाकर चार इंश्योरेंस कंपनियां बनाई गई थी। इस तरह देश में कुल चार जनरल इंश्योरेंस कंपनियां अस्तित्व में आई! ये कंपनियां थी नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड। ये सभी कंपनियां जनरल इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन (जीआईसी) के पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनियां थी। साल 20️0️3 में  इन चारों कंपनियों का स्वामित्व सरकार के पास आ गया था, लेकिन अब नया संशोधन विधेयक लाकर इसमें सरकार की भागीदारी को समाप्त किया जा रहा है। 


 

देश की इन चार साधारण बीमा कंपनियों में लगभग 55 हज़ार कर्मचारी कार्यरत हैं। निजी हाथों में जाते ही इन कंपनियों में कार्यरत कर्मचारियों में असंतोष है। उन्हें डर है कि निजी हाथों में जाते ही कंपनी के मालिकों का पहला लक्ष्य कर्मचारियों की छंटनी करना होगा। ये होगा या नहीं, पर इन कर्मचारियों ने अपना विरोध करना शुरू कर दिया। कर्मचारी संघ और प्रबंधन के बीच क्या समझौता हुआ, अब तक इसका खुलासा नहीं हुआ है। सरकार ने जिस तरह से इन कंपनियों के निजीकरण का फैसला लिया, उ️ससे सरकार की मंशा स्पष्ट हो रही है कि अब सरकार पूरी तरह से पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की और कदम बढ़ा चुकी है। जल्द ही दो सरकारी बैंकों का भी निजीकरण किया जा सकता है। 

जीवन बीमा कंपनी में भी सरकार अपनी हिस्सेदारी घटाएगी! एक और जहां देश में बेरोजगारी की समस्या अपने चरम पर है, वहीं इस दौरान साधारण बीमा कंपनियों का निजीकरण किए जाने से भी कर्मचारियों में छंटनी की आशंका बढ़ गई है। बीमा क्षेत्र को निजी हाथों में सौपने के सरकारी निर्णय का विपक्ष जहां विरोध कर रहा है, वहीं सरकार का तर्क भी गले नही उ️तर रहा! सरकार का कहना है कि इससे बीमा व्यवसाय में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। जबकि, बाजार में पहले से ही निजी क्षेत्र की अनेक साधारण बीमा कंपनियां कार्यरत है। जिन कंपनियों में सरकार अपनी हिस्सेदारी घटाने जा रही है, उ️न कंपनियों का दो लाख करोड़ रुपए से अधिक की संपत्ति का आधार है। उ️समें भी एक लाख 78 हजार करोड़ रुपए की राशि सरकारी क्षेत्र में निवेश की है।


 

देश की आम जनता के लिए मात्र 12 रुपए की प्रीमियम में दो लाख रुपए का 'प्रधानमंत्री बीमा सुरक्षा योजना' यही कंपनियां प्रदान कर रही हैं, तो आयुष्मान स्वास्थ्य बीमा योजना का बोझ भी यही कंपनियां उ️ठा रही है। 'बहुजन हिताय' की यह सरकारी योजनाएं यही कंपनियां चला सकती है। जबकि, निजी क्षेत्र की प्राइवेट बीमा कंपनियां ऐसी योजनाओं में हाथ नहीं डालती। उन्हें सिर्फ अपना लाभ और जनता की कमाई से मोटा मुनाफा कमाना आता है। सरकार लाख जतन कर ले, पर निजी क्षेत्र जुर्माना देकर अपना पीछा ऐसी सरकारी योजनाओं से छुडाना चाहता है।

सरकार कि विविध योजनाओं का संचालन भी सरकारी क्षेत्र के बैंक ही कर रहे हैं, जबकि निजी क्षेत्र के बैंकों को अपने लाभ-हानि की गणना करना ही उ️चित दिखाई देता है। ऐसे में सरकार द्वारा एक-एक करके अपने लाभ कमाने और सामाजिक जिम्मेदारियों का निर्वहन करने वाले संस्थानों को निजी हाथों में सौंपने का कोई उ️चित कारण दिखाई नहीं देता। देश में आजादी के बाद स्थापित ऐसे संस्थानों को मजबूत करने उन्हें विश्व बाजार के लिए प्रतिस्पर्धी बनाने के बजाए निजी हाथों में सौंपना सरकार के लिए आत्मघाती हो सकता है।

देश के विकास के शुरुआती दौर में सरकार ने पूंजीवाद से निपटने और गरीब तथा निचले तबके को सामाजिक सुरक्षा और सुविधाएं उ️पलब्ध कराने के लिए अनेक ऐसे संस्थानों की स्थापना की! ताकि, अमीर और गरीब के बीच की खाई को पाटने के लिए अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों का निर्वहन कर सकें तथा सरकार के काम और देश के विकास में भागीदार बने। इसलिए अनेक सरकारी संस्थानों की स्थापना कंपनी एक्ट के तहत करके इन्हें सरकारी कंपनी बनाया गया। आगे चलकर इन कंपनियों ने देश की तरक्की में अहम भूमिका निभाई है। पर, अब ऐसा लग रहा है कि देश के विकास में भागीदार इन संस्थानों को समाप्त करना ही सरकार की योजना है, पर ये उसके लिए खतरनाक फैसला हो सकता है। साधारण बीमा कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी घटाना भी ऐसा ही कदम होगा।

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