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INDIA में 53,000 कंपनियां नहीं भरती हैं टैक्स

नई दिल्ली।  गरीबों को भले ही सरकारी मदद को सब्सिडी और उद्योगों को सरकारी मदद को प्रोत्साहन करार देने वालों आड़े हाथों लिया जाता हो, यह लेकिन वास्तविकता यही है कि कंपनियां टैक्स में राहत का भरपूर फायदा उठा रही हैं। फायदा यह ऐसा भी नहीं है कि हमेशा तार्किक साबित होता हो।
 आंकड़ों पर नजर डालें तो भारत में कई बड़ी कंपनियां ऐसी हैं। जो लगातार सालाना घाटा दिखाकर टैक्स से बचती आ रही हैं। प्रधानमंत्री ने इस संबंध में अपने एक भाषण में कहा था कि उन्हें अर्थशास्त्र के विशेषज्ञों के द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाली शब्दावली पर बहुत हैरानी होती है। 
प्रधानमंत्री का कहना था कि जब सरकार गरीबों या किसानों को आर्थिक मदद देती है तो उसे सब्सिडी कहा जाता है। जबकि कंपनियों को जरूरत के हिसाब से टैक्स में दी जाने वाली छूट को इन्सेंटिव और वित्तीय मदद कहा जाता है। कॉर्पोरेट टैक्स के दायरे में आने वाली कंपनियों को मिले इंसेंटिव्स की वजह से सरकार को मिलने वाले रेवेन्यू में 62,000 करोड़ रुपयों का नुकसान हुआ।
 पिछले 5 वर्षो के नैशनल टैक्स डेटा के विश्लेषण के बाद यह पता चला है कि बड़ा मुनाफा कमाने वाली कंपनियों ने भी कम इफैक्टिव टैक्स चुकाया है। इफैक्टिव टैक्स दरअसल वह टैक्स है जो कंपनियां अपने मुनाफे पर देती है।

1 करोड़ तक के मुनाफे पर 2014-15 में 29.37 प्रतिशत का टैक्स लगता था और 500 करोड़ रुपए तक के मुनाफे पर कॉर्पोरेट टैक्स की दर 22.88 प्रतिशत थी। इसका मतलब यह है कि छोटी कंपनियां भी बड़ी कंपनियों के साथ असामान्य माहौल में प्रतिस्पर्धा कर रही हैं।
 जिसमें बड़ी कंपनियों को टैक्स संबंधी भारी फायदे मिल रहे हैं और इफैक्टिव टैक्स में अंतर साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है।

इसके अतिरिक्त 2014-15 के आंकड़ों के मुताबिक 43.6 प्रतिशत भारतीय कंपनियां घाटे में रहीं। 3 प्रतिशत कंपनियों ने कोई भी मुनाफा नहीं कमाया और 47.4 प्रतिशत कंपनियों ने 1 करोड़ तक का ही मुनाफा दिखाया है।
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