आज रोजमरा की जिंदगी में समय का बडा अभाव रहता है। समय के अभाव के करण कई महत्वपूर्ण काम छुट जाते है। इन दिनों श्राद्ध चल रहे है और यदि आपके पास सयम या धन का अभाव है, आप इन दिनों आकाश की ओर मुख करके, दोनों हाथों द्वारा आह्वान करके पितृगणों को नमस्कार कर सकते हैं। श्राद्ध ऎसे दिवस हैं जिनका उद्देश्य परिवार का संगठन बनाए रखना है। ज्योतिषीय दृष्टि से इस अवधि में सूर्य कन्या राधि पर गोचर करता है इसलिए इसे कनागत भी कहते है।
श्राद्ध के कुछ मुख्य बिंदू--
सूर्य कनागत होने से नीच राशि की ओर अग्रसर होता है, अत: मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिएं। * बह्मचर्य पालन, शेव, नाखून, श्रृंगार नहीं करें।
* चंद्र धरती के सबसे निकट होता है और पितर पृथ्वी लोक पर आते हैं।
* तीन पीढी तक श्राद्ध किया जा सकता है।
ज्येष्ठ पुत्र या पौत्र करे तर्पण। महिलाएं भी कर सकती हैं। पूर्वजों के निधन के प्रथम वर्ष श्राद्ध नहीं करें। रात्रि के समय, अपने जन्म दिन पर भी न करें तर्पण करते समय मुंह दक्षिण की ओर रखना चाहिए। कुछ लोग अपने जीवित रहते ही अपना क्षाद्ध कर्म निपटा जाते हैं। श्राद्ध में श्रद्धा चाहिए। यदि सक्षम नहीं हैं, तो निर्जन स्थान पर अंजलि में जल भर कर अर्पित करें और स्मरण करते हुए पित्तरों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करें।
पितृ दोष में अवश्य करें श्राद्ध पितृ दोष के कारण निम्न फल रहते हैं -
संतान न होना, धन हानि, गृह क्लेश, दरिद्रता, मुकद्दमे, कन्या का विवाह न होना, घर में हर समय बीमारी, नुक्सान पर नुक्सान, धोखा, दुर्घटनाएं, शुभ कार्यों में विघ्न।
श्राद्ध के 4 मुख्य कर्म----
तर्पण- दूध, तिल, कुशा, पुष्प, सुगंधित जल पित्तरों को नित्य अर्पित करें।
पिंडदान- चावल या जौ के पिंडदान, भूखों को भोजन।
वस्त्रदान- निर्धनों को वस्त्र दें।
दक्षिणा भोजन के बाद दक्षिणा एवं चरण स्पर्श बिना फल नहीं।
श्राद्ध के कुछ मुख्य बिंदू--
सूर्य कनागत होने से नीच राशि की ओर अग्रसर होता है, अत: मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिएं। * बह्मचर्य पालन, शेव, नाखून, श्रृंगार नहीं करें।
* चंद्र धरती के सबसे निकट होता है और पितर पृथ्वी लोक पर आते हैं।
* तीन पीढी तक श्राद्ध किया जा सकता है।
ज्येष्ठ पुत्र या पौत्र करे तर्पण। महिलाएं भी कर सकती हैं। पूर्वजों के निधन के प्रथम वर्ष श्राद्ध नहीं करें। रात्रि के समय, अपने जन्म दिन पर भी न करें तर्पण करते समय मुंह दक्षिण की ओर रखना चाहिए। कुछ लोग अपने जीवित रहते ही अपना क्षाद्ध कर्म निपटा जाते हैं। श्राद्ध में श्रद्धा चाहिए। यदि सक्षम नहीं हैं, तो निर्जन स्थान पर अंजलि में जल भर कर अर्पित करें और स्मरण करते हुए पित्तरों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करें।
पितृ दोष में अवश्य करें श्राद्ध पितृ दोष के कारण निम्न फल रहते हैं -
संतान न होना, धन हानि, गृह क्लेश, दरिद्रता, मुकद्दमे, कन्या का विवाह न होना, घर में हर समय बीमारी, नुक्सान पर नुक्सान, धोखा, दुर्घटनाएं, शुभ कार्यों में विघ्न।
श्राद्ध के 4 मुख्य कर्म----
तर्पण- दूध, तिल, कुशा, पुष्प, सुगंधित जल पित्तरों को नित्य अर्पित करें।
पिंडदान- चावल या जौ के पिंडदान, भूखों को भोजन।
वस्त्रदान- निर्धनों को वस्त्र दें।
दक्षिणा भोजन के बाद दक्षिणा एवं चरण स्पर्श बिना फल नहीं।
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