दिल्ली में रहने वाले लोग मध्य प्रदेश
घूमने का मन बनाते हैं तो उनकी कल्पना ओरछा और खजुराहो के मंदिरों तक ही
दौड़ती है। मैं भी उनमें से एक हूं। मैंने भी तय किया कि मध्य प्रदेश में
ओरछा होकर आता हूं। उसके लिए मुझे झांसी तक ट्रेन से जाना था तो दिन की
ट्रेन में सवार होकर चल पड़ा झांसी की ओर। लेकिन वहां पहुंचने से कुछ पहले
अचानक एक छोटे से कस्बे में बड़ा सा महल दिखा, जो काफी प्रभावशाली लग रहा
था छोटी सी पहाड़ी पर बसे इस महल को दूर से करीब आते देख रहा था। महल पास
आया और उस कस्बे के स्टेशन का बोर्ड पढ़ा तो उस पर दतिया लिखा था।
एक्सप्रेस ट्रेन होने के कारण गाड़ी यहां रुकी नहीं। पर न जाने क्यों नजरें
जरूर ठहर गई। झांसी उतरने पर मुझे लगा कि ओरछा छोड़कर दतिया ही चला जाए।
अगले दिन सुबह झांसी से टैंपो में बैठे और दतिया चल दिए।
यात्रा बड़ी कठिन थी एक तो सड़क खराब और दूसरा टैंपो वाले ने जरूरत से ज्यादा लोग भर लिए थे। मन ही मन पछताया कि पैसा बचाने के चक्कर में इतना कष्ट मोल लिया। अगर आप जाएं तो जीप ले लीजिएगा। खैर जैसे-तैसे दतिया पहुंचे। झांसी से दूरी तो कुल 16 किमी ही है पर लगा यहां पहुंचने में एक युग बीत गया है। दतिया पहुंचकर लगा जैसे बीते हुए वक्त के किसी दौर में पहुंच गए हों। सामने एक टीले पर पुरानी इमारत दिखाई दी। उसे देखकर शक हुआ कि यह तो वह महल नहीं है जिसे ट्रेन से देखा था। फिर लगा कि हो न हो नजरें धोखा खा गई हों तो वहां तक पहुंचे। इमारत के बाहर संग्रहालय लिखा हुआ था। उसकी हालत देखकर लगा कि अंदर न जाएं तो ही बेहतर है। जैसे वहां से मुड़े तो कस्बे के पार दूसरी पहाड़ी पर वह महल दिखाई दिया जिसे देखने के लिए मैंने ओरछा छोड़ दिया था। पैदल ही यह रास्ता पार करके मैं इस महल तक पहुंचा। गोविंद महल के नाम से मशहूर यह सात मंजिला महल राजा बीर सिंह जू देव ने 1614 में बनवाया था। दतिया के राजा असल में ओरछा से ही आए थे। यह महल आज भारत में हिंदू स्थापत्य के सबसे महत्वपूर्ण उदाहरणों में एक है। महल के अंदर बुंदेल चित्रकला के नमूने देखे जा सकते हैं। महल में पत्थर की जालियों का शिल्प देखते ही बनता है। यह महल ही कस्बे का सबसे आकर्षक स्थापत्य है।
मां पीतांबरा की सिद्ध पीठ
इसके अलावा दतिया में धार्मिक पर्यटकों के लिए दो महत्वपूर्ण जगहें हैं। देवी के भक्तों को गोपेश्वर मंदिर जरूर जाना चाहिए। यह श्री पीतांबरा देवी की सिद्धपीठ भी है। साल भर यहां देश के कोने-कोने से लोग दीक्षा लेने आते रहते हैं। नवरात्र में तो यह भीड़ देखते ही बनती है। यहां से कुछ ही दूर गोपीनाथ का मंदिर हिंदू और मुगल शैली का संगम है और मंदिर में मुगल भित्तिचित्र लगे हुए हैं। गोपी मंदिर के बाहर बैठकर मैं सुस्ता रहा था कि एक वृद्ध सज्जन भी आकर बैठ गए। उन्होंने बातों ही बातों में बताया कि दतिया धर्म और वास्तु का महत्वपूर्ण गढ़ रहा है। महाभारत में इसे दैत्यावक्र कहा गया है। इस राज्य की यह हैसियत थी कि ब्रिटिश शासन में इसकी वार्षिक आय 70 हजार पौंड हुआ करती थी।
सोनागिरि
एक पहाड़ी पर 108 मंदिर इस जानकारी के लिए उन्हें धन्यवाद देकर मैं दतिया के दूसरे धार्मिक स्थल सोनागिरि की ओर बढ़ा। यहां एक ही पहाड़ी पर 108 जैन मंदिर हैं। जैसे ही मठ के दिगंबर संत का देहावसान होता है तो उनके सम्मान में एक मंदिर बना दिया जाता है। यह प्रथा 17वीं शताब्दी में पहले मंदिर निर्माण के साथ शुरू हो गई थी। मंदिरों के आसपास काफी हरियाली है और यहां मोर भी बड़ी संख्या में है। खास बात यह है कि हर मंदिर की शैली में थोड़ा सा फर्क है। सर्दियों का समय यहां आने के लिए सबसे अच्छा है।
सोना गिरि में जैन मुनि से प्रवचन सुनने के बाद मैं फिर दतिया लौटा। ढलती शाम देखने गोविंद महल पहुंच गया। महल की सातवीं मंजिल से ढलते सूरज का नजारा देखना वाकई अनूठा अनुभव था।
पहुंचने-ठहरने के इंतजाम
दिल्ली से दतिया आप सड़क व रेल दोनों मार्गो से पहुंच सकते हैं। झांसी से उतर कर जीप या टैंपो लेना होगा। दतिया में टूरिस्ट लॉज है जिसमें 850 रुपये में सिंगल और 1100 रुपये में डबल बेड रूम मिलता है। आप चाहें तो झांसी में भी ठहर सकते हैं। यहां से दतिया का रास्ता एक घंटे का ही है।
यात्रा बड़ी कठिन थी एक तो सड़क खराब और दूसरा टैंपो वाले ने जरूरत से ज्यादा लोग भर लिए थे। मन ही मन पछताया कि पैसा बचाने के चक्कर में इतना कष्ट मोल लिया। अगर आप जाएं तो जीप ले लीजिएगा। खैर जैसे-तैसे दतिया पहुंचे। झांसी से दूरी तो कुल 16 किमी ही है पर लगा यहां पहुंचने में एक युग बीत गया है। दतिया पहुंचकर लगा जैसे बीते हुए वक्त के किसी दौर में पहुंच गए हों। सामने एक टीले पर पुरानी इमारत दिखाई दी। उसे देखकर शक हुआ कि यह तो वह महल नहीं है जिसे ट्रेन से देखा था। फिर लगा कि हो न हो नजरें धोखा खा गई हों तो वहां तक पहुंचे। इमारत के बाहर संग्रहालय लिखा हुआ था। उसकी हालत देखकर लगा कि अंदर न जाएं तो ही बेहतर है। जैसे वहां से मुड़े तो कस्बे के पार दूसरी पहाड़ी पर वह महल दिखाई दिया जिसे देखने के लिए मैंने ओरछा छोड़ दिया था। पैदल ही यह रास्ता पार करके मैं इस महल तक पहुंचा। गोविंद महल के नाम से मशहूर यह सात मंजिला महल राजा बीर सिंह जू देव ने 1614 में बनवाया था। दतिया के राजा असल में ओरछा से ही आए थे। यह महल आज भारत में हिंदू स्थापत्य के सबसे महत्वपूर्ण उदाहरणों में एक है। महल के अंदर बुंदेल चित्रकला के नमूने देखे जा सकते हैं। महल में पत्थर की जालियों का शिल्प देखते ही बनता है। यह महल ही कस्बे का सबसे आकर्षक स्थापत्य है।
इसके अलावा दतिया में धार्मिक पर्यटकों के लिए दो महत्वपूर्ण जगहें हैं। देवी के भक्तों को गोपेश्वर मंदिर जरूर जाना चाहिए। यह श्री पीतांबरा देवी की सिद्धपीठ भी है। साल भर यहां देश के कोने-कोने से लोग दीक्षा लेने आते रहते हैं। नवरात्र में तो यह भीड़ देखते ही बनती है। यहां से कुछ ही दूर गोपीनाथ का मंदिर हिंदू और मुगल शैली का संगम है और मंदिर में मुगल भित्तिचित्र लगे हुए हैं। गोपी मंदिर के बाहर बैठकर मैं सुस्ता रहा था कि एक वृद्ध सज्जन भी आकर बैठ गए। उन्होंने बातों ही बातों में बताया कि दतिया धर्म और वास्तु का महत्वपूर्ण गढ़ रहा है। महाभारत में इसे दैत्यावक्र कहा गया है। इस राज्य की यह हैसियत थी कि ब्रिटिश शासन में इसकी वार्षिक आय 70 हजार पौंड हुआ करती थी।
एक पहाड़ी पर 108 मंदिर इस जानकारी के लिए उन्हें धन्यवाद देकर मैं दतिया के दूसरे धार्मिक स्थल सोनागिरि की ओर बढ़ा। यहां एक ही पहाड़ी पर 108 जैन मंदिर हैं। जैसे ही मठ के दिगंबर संत का देहावसान होता है तो उनके सम्मान में एक मंदिर बना दिया जाता है। यह प्रथा 17वीं शताब्दी में पहले मंदिर निर्माण के साथ शुरू हो गई थी। मंदिरों के आसपास काफी हरियाली है और यहां मोर भी बड़ी संख्या में है। खास बात यह है कि हर मंदिर की शैली में थोड़ा सा फर्क है। सर्दियों का समय यहां आने के लिए सबसे अच्छा है।
सोना गिरि में जैन मुनि से प्रवचन सुनने के बाद मैं फिर दतिया लौटा। ढलती शाम देखने गोविंद महल पहुंच गया। महल की सातवीं मंजिल से ढलते सूरज का नजारा देखना वाकई अनूठा अनुभव था।
पहुंचने-ठहरने के इंतजाम
दिल्ली से दतिया आप सड़क व रेल दोनों मार्गो से पहुंच सकते हैं। झांसी से उतर कर जीप या टैंपो लेना होगा। दतिया में टूरिस्ट लॉज है जिसमें 850 रुपये में सिंगल और 1100 रुपये में डबल बेड रूम मिलता है। आप चाहें तो झांसी में भी ठहर सकते हैं। यहां से दतिया का रास्ता एक घंटे का ही है।
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