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दो एमएलए के टूटने से सहमी भाजपा,संगठन में विधायकों की पूछ परख बढ़ी बागी तेवर रखने वाले विधायकों की निगरानी भी जारी


   भोपाल। दो दिन पहले तक अल्पमत के नाम पर कमलनाथ सरकार को आंख दिखाने वाली बेफि क्र भाजपा अचानक अपने विधायकों की हिफ ाजत को लेकर फि क्रमंद और सहमी हुई नजर आ रही है। सतर्कता का आलम यह है कि बागी तेवर रखने वाले पार्टी विधायकों की पल-पल की गतिविधियों पर नजर रखी जा रही है। संगठन में भी इनकी पूछ-परख बढ़ गई है। 
पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी शुक्रवार को गोरखपुर में वही बात दोहराई जो पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा दो दिन पहले कह चुके हैं। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा ,कि भाजपा ने कभी नहीं चाहा कि वह जोड़-तोड़ कर सरकार बनाएं, लेकिन अब जब कांग्रेस इसकी शुरुआत कर चुकी है, तब भाजपा भी पीछे नहीं हटने वाली। उन्होंने कहा,कि हम सरकार गिराने में दिलचस्पी रखते तो इस सरकार का गठन ही नहीं होने देते। यह बात वह पहले भी सदन में कह चुके हैं।
 कोई ठोस योजना नहीं 
इस तरह खुद को भयमुक्त दिखाने के लिए पार्टी के बड़े नेता भले ही यह दोहराएं कि खेल की शुरुआत कांग्रेस ने की है, खत्म हम करेंगे, लेकिन कब और कैसे, इसकी कोई ठोस योजना किसी के पास नहीं है। बहरहाल, सूबे में राजनीतिक शह और मात का खेल जोरो पर है। यह तय है,कि बीते दो दिनों में सियासी दृश्य एकदम बदला हुआ है। 
कमलनाथ को हल्के में लेना पड़ा भारी
 भाजपा के नेता शुरू से कमलनाथ को हलके में ले रहे थे। वे इस तथ्य से अंजान बने रहे कि जो खेल उसने सत्ता में रहते खेला ,इस तरह की राजनीति में नाथ उनसे कहीं आगे हैं। इसकी बानगी उन्होंने बुधवार को विधानसभा में दिखा दी। भाजपा नेताओं को इसका जरा भी अहसास नहीं होने दिया और एक गैरजरूरी विषय पर मत विभाजन करवा कर भाजपा विधायक दल को ही एक तरह से विभाजित कर दिया। घटना से हतप्रभ भाजपा समझ ही नहीं पा रही है कि यह क्या और कैसे हुआ? दो दिनों से मंथन जारी है।
 सुलह के रास्ते खुले रखने की रणनीति
कांग्रेस के पक्ष में वोट डालने वाले विधायकों के प्रति पार्टी का नरम रूख बताता है कि वह सुलह के दरवाजे बंद नहीं करना चाहती। दरअसल,दलबदल कानून के चलते दोनों  विधायक कांग्रेस में तो शामिल हो नहीं सकते इसलिए दिल्ली के निर्देश पर इनकी मान-मनौव्वल की कोशिशें जारी है। भाजपा यह भी जान रही है कि इन विधायकों को कांग्रेस का उच्च स्तरीय नेतृत्व तो स्वीकार करेगा, लेकिन स्थानीय स्तर पर इनका विरोध होना तय है। ऐसे में देखो और इंतजार करो की नीति भी अपनाई जा रही हैं।
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