आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने सुप्रीम कोर्ट को कहा है कि, वह काजियों को सलाह देंगे कि वो दूल्हों से कहें कि विवाह खत्म करने के लिए 'तीन तलाक' का रास्ता न चुनें.
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सोमवार को अदालत में दाखिल हलफनामे में कहा है कि, अपनी वेबसाइट, प्रकाशनों और सोशल मीडिया के जरिए काजियों को मशवरा जारी करने का फैसला किया गया है कि वे निकाहनामे पर दस्तखत करते वक्त दूल्हों से मतभेद होने की स्थिति में ‘एक ही बार में तीन तलाक’ का रास्ता न चुनें क्योंकि ‘यह शरीयत में एक गलत परंपरा है.
हलफनामे के सचिव मोहम्मद फजलरुरहीम के अनुसार, ‘निकाह कराते समय काजी दूल्हे को सलाह देगा कि मतभेद के कारण तलाक की स्थिति पैदा होने पर वह एक ही बार में 'तीन तलाक' नहीं देगा. क्योंकि शरीयत में यह गलत परंपरा है.
साथ ही हलफनामे में कहा गया कि, निकाह कराने वाला शख्स दूल्हा और दुल्हन दोनों को निकाहनामे में यह शर्त शामिल करने की सलाह देगा कि उसके पति द्वारा एक ही बार में 'तीन तलाक' की परंपरा को अलग रखा जायेगा.
चीफ जस्टिस जे एस खेहर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यों की संविधान पीठ मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के हलफनामे की समीक्षा करेगी. इस संविधान पीठ ने 18 मई को तीन तलाक के मुद्दे पर सुनवाई पूरी की है.
इससे पहले, तीन तलाक की परपंरा की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर संविधान पीठ ने केंद्र सरकार, एआईएमपीएलबी, एआईएमडब्लूपीएलबी और दूसरे पक्षों की पेश की गई दलीलों को छह दिन तक सुना था.
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